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धारा 420 के मामले में सजा और जमानत का प्रावधान

 धारा 420 के मामले में सजा और जमानत का प्रावधान

धोखा धड़ी से क्या तात्पर्य होता है?

#1          भारतीय दंड संहिता की धारा 420 को समझने के लिए हमें सबसे पहले धारा 415 में परिभाषित धोखा धड़ी के प्रावधानों को समझना चाहिए, क्योंकि धारा 420 के तहत होने वाले सभी अपराधों में धारा 415 के धोखा धड़ी के तत्व जरूर ही मौजूद होते हैं।

 
         भारतीय दंड संहिता की धारा 415 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति, किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देकर, धोखे से या बेईमानी से कोई भी संपत्ति देता है, या इस बात की सहमति देता है, कि वह उस संपत्ति को खरीद सकता है, या धोखा देने के इरादे से जानबूझ कर किसी अन्य व्यक्ति को कोई काम करने के लिए कहता है। 
किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य को कोई कार्य करने के लिए प्रेरित करना या किसी व्यक्ति के साथ उसे धोखा देने के इरादे से किया गया कोई काम जिससे उस उस व्यक्ति के शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति को नुकसान पहुँचता है, या किसी प्रकार के नुकसान होने का कारण बनता है, या भविष्य में किसी प्रकार के नुक्सान होने की संभावना होती है, "धोखा धड़ी" के नाम से जाना जाता है।
#2
धारा 420 के आवश्यक तत्व
1. धोखा (चीटिंग)
2. किसी भी मूल्यवान संपत्ति या किसी भी महत्वपूर्ण चीज़ को सील करने या उसके आकार, प्रकार में बदलाव करने के लिए या उस संपत्ति को नष्ट करने के लिए बेईमानी की भावना से किसी अन्य व्यक्ति को प्रेरित करना।
3. कोई धोखा धड़ी या बेईमानी करने के लिए किसी व्यक्ति की आपराधिक मन स्तिथि।
4. किसी व्यक्ति को धोखा देने के उद्देश्य से किसी भी बात का जान बूझकर झूठा प्रतिनिधित्व करना
#3
1. इस धारा के अंतर्गत अधिकतम सात वर्ष कारावास निर्धारित किया गया है, जो कि न्यायाधीश के द्वारा तय किया जाता है। कारावास के दंड के साथ साथ आर्थिक दंड देने का भी प्रावधान है, जो कि न्यायाधीश जुर्म की संगीनता के आधार पर तय करते हैं। यह एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति द्वारा समझौता भी किया जा सकता है।
2. किसी भी अभियुक्त को कारावास से छुड़ाने के लिए न्यायालय के सामने जो धनराशि जमा की जाती है, या राशि को जमा करने की प्रतिज्ञा ली जाती है, उस राशि को एक बॉन्ड के रूप में भरा जाता है, इसे ही जमानत की राशि कहा जाता है। और जमानत की राशि के बॉन्ड तैयार होने के बाद न्यायालय द्वारा  उचित तर्क के आधार पर ही आरोपी को जमानत दी जाती है।
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3. यदि किसी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाता है, तो वह सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए भी आवेदन कर सकता है। न्यायालय द्वारा स्वीकृति प्रदान करने के उपरांत ही अभियुक्त को जमानत प्रदान कर दी जाती है। 
4. जमानत के लिए भारतीय दंड संहिता में कुछ ऐसी भी धाराएं हैं, जिसमे 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान होता है, उसमें 90 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करनी होती है, यदि इस समयावधि में किसी कारणवश चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाती है, तो न्यायालय द्वारा अभियुक्त को जमानत दे दी जाती है। 
    #4       अगर किसी धारा में 10 वर्ष से कम सजा का प्रावधान होता है, तो ऐसे मामलों में जाँच एजेंसी को 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होती है, यदि इस अवधि में चार्जशीट दाखिल नहीं होती है, तो भी न्यायालय द्वारा अभियुक्त को जमानत दे दी जाती है। जमानत के समय न्यायालय अभियुक्त के क्रिमिनल रिकार्ड की गहन जाँच करते हैं, जिसके आधार पर जमानत देने का निर्णय लेते हैं।
  #1           यह एक संगीन और गैर जमानती अपराध है, जिसमें अधिकतम सात बर्ष की सजा के साथ - साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान दिया गया है। इसमें न्यायालय में आरोपी का इरादा साबित करने की आवश्यकता होती है, कि उसने धोखा धड़ी और किसी प्रकार का झूठा प्रतिनिधित्व किया है, या नहीं। 
      #5                                  thank you
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