Intercast And Interreligious विवाह:
विवाह:
रजिस्ट्रेशन? कैसे करवाएँ
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
@1Custom अधिनियम के तहत विवाह की प्रक्रिया-
विवाह का नोटिस-
अधिनियम
के तहत हर राज्य सरकार 'विवाह
आधिकारी'
घोषित
करती है जो
मुख्यत:
DM/SDM आदि
अधिकारी ही होते है.
ऐसे
में ये देखना जरुरी है कि ऐसे
विवाहों की वैधता,
इनके
पंजीकरण और
कानून क्या कहता है.
विशेष
विवाह अधिनियम,
1954
अधिकांशत:
पर्सनल
लॉ में अपने धर्म के बाहर
शादियाँ वैध नहीं मानी जाती
है.
जैसे
हिन्दू विवाह अधिनियम,
१९५५
की धारा ५ के तहत इस अधिनियम
में
२ हिन्दुओं के बीच ही वैध
विवाह संभव है.
उत्तराधिकार
के सम्बन्ध में दिक्कतें
होंगी.
इसे
ही देखते हुए विशेष विवाह
अधिनियम की जरुरत महसूस हुई.
इस
अधिनियम के तहत दोनों में से
कोई भी पार्टी बिना धर्म
परिवर्तन के एक वैध शादी कर
सकती
है.
साफ़
है कि यह अधिनियम अनुच्छेद
२१ के जीवन जीने का अधिकार के
तहत अपना जीवनसाथी स्वयं चुनने
की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता
है.
@2
अधिनियम के तहत विवाह करने की शर्तें-
सर्वप्रथम
यह जान लेते है कि अधिनियम के
तहत विवाह करने के लिए क्या-क्या
शर्तें हैं-
विवाह
करने वाले दोनों पक्षों में
से किसी का भी कोई जीवित पति/
पत्नी
नहीं होना चाहिए.
दोनों
पार्टियों में कोई भी पार्टी
मानसिक असंतुलन के कारण कानूनी
रूप से सम्मति
देने में असमर्थ
नहीं होनी चाहिए.
दोनों
पार्टियों में कोई भी ऐसा नहीं
होना चाहिए कि वह कानूनी रूप
से वैद्य
सम्मति तो दे सकता/
सकती
है पर मानसिक तौर पर विकार
ग्रसित होने के
कारण वह विवाह
और संतानोत्पति के योग्य नहीं
है.
दोनों
में से किसी भी पार्टी को
उन्मत्तता (mental
insanity) के
दौरे नहीं
पड़ते हो.
विवाह
कर रहे पुरुष की उम्र २१ वर्ष
या उससे अधिक और महिला
की उम्र
१८ वर्ष या उससे अधिक होनी
चाहिए.
दोनों
पार्टियां एक दूसरे के
प्रतिषिद्ध
कोटि (
degree of prohibited relationship) में
नहीं आनी
चाहिए.
अपने
क्षेत्र के मजिस्ट्रेट,जहाँ
दोनों में से कोई भी पार्टी
रहती हो,
के
समक्ष
पार्टियों को विवाह
करने का नोटिस देना होता हैं.
@3
नोटिस
के साथ अधिकांशत:
निम्नलिखित
डॉक्यूमेंट देने होते है-
१.
पासपोर्ट
साइज फोटो.
२.
जन्म
तिथि का सबूत (जन्म
प्रमाण पत्र /
१०वीं/
१२
वीं की मार्कशीट
आदि).
३.
रहने
के स्थान का सबूत (राशन
कार्ड,
क्षेत्र
के थाने के थानाधिकारी की
रिपोर्ट).
४.
पति
और पत्नी की ओर से एफिडेविट.
५.
फीस.
दोनों
में से एक पार्टी उस मजिस्ट्रेट
के क्षेत्र में नहीं रह रहीं
हो तो
जिस क्षेत्र में दूसरी
पार्टी रह रही हो,
वहाँ
के मजिस्ट्रेट को विवाह नोटिस
की
कॉपी भेजी जाएगी.
@4
(धारा
६(३)
के
अनुसार)
नोटिस
के सम्बन्ध में ध्यान देने
योग्य बिन्दु-
हाथों-
हाथ
शादी/
तुरंत
शादी संभव नहीं -
गौर
किया जाए कि विवाह करने के लिए
३० दिन का यह नोटिस अनिवार्य
है.
इस
अधिनियम के तहत कोई शादी
हाथों- हाथ
संभव नहीं है.
नोटिस
पार्टियों के घर भेजे जाने
का कोई प्रावधान नहीं-
प्रणव
कुमार मिश्रा
बनाम दिल्ली
सरकार W.P.9
(C) 748 Of 2009, के
मामले में दिल्ली हाई कोर्ट
ने कहा है कि कानूनी ऐसी कोई
शर्त नहीं है कि विवाह नोटिस
को पार्टियों के
घर के पते पर
भेजा जाए ,
जरुरत
मात्र यह है कि नोटिस विवाह
अधिकारी के
ऑफिस नोटिस बोर्ड
पर लगाया जाए.
@5
नोटिस
देने के बाद की प्रक्रिया ?
पार्टियों
द्वारा नोटिस दिए जाने के बाद
विवाह अधिकारी नोटिस को नोटिस
बुक में रिकॉर्ड करेगा और उसे
कोर्ट के नोटिस बोर्ड आदि पर
लगवायेगा.
ऐसा
करने का उद्देश्य यह है कि अगर
किसी व्यक्ति को पार्टियों
के बीच विवाह से
आपत्ति/आक्षेप
हो तो वह नोटिस पा कर इस सम्बन्ध
में जान सके और अपना
विरोध जता
सके.
इसे
नोटिस का प्रकाशन कहते है.
आपत्ति
गौरतलब है कि
विवाह पर सिर्फ
इन्हीं मुद्दों पर आप्पति
जताई जा सकती है कि पार्टी
पहले
सेही विवाहित है,
अत:
जीवित
जीवनसाथी के रहते वह दूसरी
शादी नहीं कर सकता/
कर
सकती
या फिर कि पार्टियाँ एक
दूसरे की prohibited
degree में
है या धारा ४ में
दी गयी विवाह
की कोई और शर्त का उल्लंघन
किया गया है.
इस
बात पर किसी
तरह की आपत्ति
नहीं उठायी जा सकती कि पार्टियों
के अभिभावक विवाह से
सहमत नहीं
है.
हर
बालिग़ व्यक्ति अपनी इच्छा
अनुसार विवाह करने का
अधिकारी
है.
@6 अगर
किसी तरह की आपत्ति विवाह
अधिकारी को प्राप्त होती है
तो वह पहले
उस आपत्ति पर 30
दिनों
के भीतर जाँच करेगा.
और
जब तक उस आपत्ति पर
निर्णय
नहीं ले लेता तब तक विवाह
रजिस्टर नहीं करेगा.
आपत्ति
पर जाँच
करने के लिए विवाह
अधिकारी के पास सिविल कोर्ट
की शक्तियाँ होती है.
घोषणा
और शादी का प्रमाण पत्र-
और
अगर किसी व्यक्ति के द्वारा
किसी तरह
की कोई आपत्ति नहीं
की जाती तो विवाह अधिकारी ३
गवाहों के सामने
पार्टियों
के बीच शादी की घोषणा करेगा
और विवाह के प्रमाण पत्र दे
देगा.
सर्टिफिकेट
दोनों पार्टियों के मध्य विवाह
का निश्चायक साक्ष्य (conclusive
proof) है.
उसकी
वैधता को चुनौती नहीं दी जा
सकती.
इस
पूरी प्रक्रिया का
उद्देश्य
यह है कि कोई ऐसी शादी रजिस्टर
न हो जाये जहाँ पहले से कोई
जीवनसाथी जीवित है या धारा 4
की
कोई शर्त का उल्लंघन न हो.
@7
हालांकि
अलग अलग राज्यों ने प्रक्रिया
सम्बन्धी औपचारिकताओं में
छोटे-मोटे
बदलाव किये है पर किसी नियम
का उद्देश्य यह नहीं हो सकता
कि अंतर्जातीय
और अंतर्धार्मिक
विवाहों को रोका जाए क्योंकि
ऐसा करना संविधान के विरुद्ध
होगा.
अपील
अगर के निर्णय के खिलाफ जिला
न्यायालय में अपील की जा
सकती
है.
इसके
आगे अपील का प्रावधान नहीं
है पर अनुच्छेद २२६ के तहत
हाई
कोर्ट जाया जा सकता है.
@8
केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएँ-
केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने
अंतर्जातीय विवाहों को
बढ़ावा देने के लिए योजना घोषित
की है.
केंद्र
सरकार
की योजना के तहत अगर
दोनों में से एक पार्टी दलित
हैं तो ऐसी पार्टियों को
कुछ
धन राशि दी जाएगी.
पर
अलग-अलग
धर्मों के जोड़ों के लिए ऐसी
कोई
योजना नहीं है.
स्पष्ट
है कि विशेष विवाह अधिनियम
१९५४ एक प्रगतिशील कानून है.
@9READ MORE-
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