रविवार, 12 जुलाई 2020

मृत्यु के बाद किराएदार के परिवार को मिलेगा संपत्ति पर अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला.

मृत्यु के बाद किराएदार के परिवार को मिलेगा संपत्ति पर अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला.

#1
              सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृतक किराएदार के परिजनों से सबलेटिंग की दलील पर मकान खाली नहीं करवाया जा सकता है.
         सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसले में कहा है कि किराएदार की मौत के बाद उसके परिवार को उसी किराएदारी के तहत संपत्ति में बने रहने का हक है. ये सबलेटिंग यानी उपकिराएदारी और किराएदार द्वारा उस संपत्ति को किसी तीसरे को किराए पर चढ़ा देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृतक किराएदार के परिजनों से सबलेटिंग की दलील पर मकान खाली नहीं करवाया जा सकता है.
 

       बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये व्यवस्था देते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें हाई कोर्ट ने एक किराएदार के परिवार को उपकिराएदार मानकर यूपी शहरी भवन (किराएदारीकिराया और खाली करने के विनियमन) एक्ट, 1972 की धारा 16(1) (बी) के तहत मकान को खाली घोषित कर दिया था.
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  #3
             सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस मामले में किराया नियंत्रक के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट को अनुच्छेद 227 के तहत अपील नहीं सुननी चाहिए थी. इस अनुच्छेद के तहत हाई कोर्ट को अपीलीय कोर्ट का अधिकार प्राप्त नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने देहरादून जिला जज के आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 227 के तहत याचिका स्वीकार करके उस पर सुनवाई की थी जो कि गलत है.
#4                  मामले में मसूरी में मकान मालिक संजय कुमार सिंघल ने अपने किराएदार के बेटे मोहम्मद इनाम से अपनी संपत्ति खाली करवाने के लिए 1999 में निचली अदालत में मुकदमा दायर किया था कि उसके किराएदार रशीद अहमद ने उसकी संपत्ति को सबलेटिंग यानी उपकिराएदरी पर उठा दिया है. किराया कानून में मकान सबलेट करने पर मकान मालिक को अपनी संपत्ति खाली करवाने का अधिकार है.
#5       निचली अदालत के आदेश पर यूपी शहरी भवन (किराएदारीकिराया और खाली करने के विनियमन) एक्ट, 1972 के तहत किराया निरीक्षक ने संपत्ति का औचक निरीक्षण किया तो उस संपत्ति में किराएदार को नहीं पाया. किराएदार रशीद अहमद की जगह मकान में कुछ लोग मिलेतब रशीद अपने गांव गए हुए थे. किराया निरीक्षक ने धारा 16(1) (बी) के तहत रिपोर्ट दी और संपत्ति को रिक्त घोषित कर दिया. रशीद ने निचली अदालत में अपनी आपत्ति अर्जी दायर की और कहा कि उस संपत्ति में उसके भाई और उनके परिवार रह रहे हैं. परिवार के बाहर का कोई भी उसमें नहीं रहता है.
#6        किराया नियंत्रक अधिकारी ने आदेश में कहा कि मकान में रहने वाले लोग यह साबित नहीं कर सके कि वे इस मकान में रशीद के साथ 1965 से रह रहे हैं. इसके बाद किराया नियंत्रक अदालत ने 2003 में संपत्ति को खाली घोषित कर दिया. इस दौरान किराएदार रशीद की मौत हो गई. रशीद के परिजनों ने किराया नियंत्रक कोर्ट के फैसले को जिला जज की कोर्ट में 2007 में चुनौती दी. जिला जज ने फैसले में कहा कि मामले में धारा 16(1) (बी) लागू नहीं हो सकती क्योंकि यहां सब्लेटिंग नहीं है. मूल किराएदार के परिजन ही मकान में रह रहे हैं.
#7      जिला जज ने किराया नियंत्रक के मकान खाली करने के आदेश को खारिज कर दिया. फिर जिला जज के इस आदेश के खिलाफ मकान मालिक संजय कुमार सिंघल ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी. हाईकोर्ट ने जिला जज के आदेश को निरस्त कर दिया और मकान को खाली करने के आदेश जारी कर दिया. इसके बाद हाई कोर्ट के इस आदेश को रशीद के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

#8

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#9

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5}क्या दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार है?

6}हिंदू उत्तराध‌िकार अध‌िनियम से पहले और बाद में हिंदू का वसीयत करने का अध‌िकार

7}निःशुल्क कानूनी सहायता-

8}संपत्ति का Gift "उपहार" क्या होता है? एक वैध Gift Deed के लिए क्या आवश्यक होता है?

#10

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

निःशुल्क कानूनी सहायता-


निःशुल्क कानूनी सहायता-

#1
के अंतर्गत सभी प्रकार के दीवानी और फौजदारी
 मुकदमों के लिए दी जाने वाली सलाह एवं सहायता
निःशुल्क कानूनी सहायता कहलाती  है।

 

कानूनी सलाह सभी स्तर के व्यक्ति प्राप्त कर
 सकतें हैं और विधिक सेवाएँं प्राधिकरण
अधिनियम  के अनुसार योग्य व्यक्ति ही मुफ्त
कानूनी सहायता सेवाएं प्राप्त कर सकतें हैं 
विधिक सेवाएँ ं प्राधिकरण
अधिनियम  के अनुसार निम्नलिखित योग्य व्यक्ति
ही मुफ्त कानूनी सहायता सेवाएँ   प्राप्त कर सकतें हैं 

#2
ए)अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य।

बी)मानव व्यापार या बेगार का शिकार व्यक्ति।

सी)स्त्री या बालक।

डी)शारीरिक या मानसिक रुप से अस्वस्थ व्यक्ति।

ई)विनाशकारी प्राकृतिक आपदासाम्प्रदायिक दंगे
जातीय    अत्याचारबाढ़सूखाभूकंपया औद्योगिक
 संकट से प्रभावित  व्यक्ति।

एफ) औद्योगिक कर्मी।

जी)जेल या संरक्षण गृह या नारी
निकेतन या मनोचिकित्सालय  में अभिरक्षित
(कस्टडी) व्यक्ति।

एच) प्रत्येक व्यक्ति जिसकी वार्षिक
आय 1,00,000 रू. से    कम  है।

ए) किन्नर जिनकी वार्षिक आय 2,00,000 रू.
 से कम है।

बी)वरिष्ठ नागरिक जिनकी वार्षिक आय 2,00,000 रू.
 से कम  है।  
    #3
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  Emergency //आपातकाल क्या है इसे क्यों और

   कब लगाया जाता है |


#4
कानूनी सेवाएं निम्नलिखित स्थितियों में वापिस
 ली जा सकती  हैं-

·        जब सहायता प्राप्त व्यक्ति के पास पर्याप्त स्ांसाधन
    हो। जब सहायता प्राप्त व्यक्ति ने कानूनी सेवाएँ मिथ्या
     निरूपण  अथवा कपट के द्वारा प्राप्त की हो।

·        जब सहायता प्राप्त व्यक्ति विधिक
    सेवाएँ प्राधिकरण/समिति के साथ अथवा विधिक सेवाएँ
     अधिवक्ता के साथ सहयोग न कर रहा हो।

·        जब व्यक्ति ने विधिक सेवाएं प्राधिकरण/समिति के 
        द्वारा 

       नियुक्त अधिवक्ता के अतिरिक्त अन्य विधि व्यवसायी
  को भी  यह कार्य सौंपा हो। सहायता प्राप्त व्यक्ति की मृत्यु
   हो जाने की स्थिति में अपवाद स्वरूप दीवानी केस में जहां
     अधिकार और दायित्व बाकी हों।
#5
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मृत्यु के बाद किराएदार के परिवार को मिलेगा संपत्ति पर अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला.

· -    ---------------------------------------------------------------  #6
      जहां कानूनी सहायता के लिए प्राप्त प्रार्थना पत्र में
     कानून का  दुरूपयोग होना पाया जाए।

 जांच एवं मूल्यांकन समिति कानूनी सहायता प्राप्त
करने के लिए दिए गए प्रार्थना-पत्र का मूल्यांकन करती
है और नालसा (मुफ्त एवं सक्षम विधिक सेवाएँ)
 के अधिनियम के अंतर्गत यह भी निर्णय करती है कि
 क्या प्रार्थीं कानूनी सहायता प्राप्त करने के योग्य भी
है या नहीं।

 कानूनी सेवाएँ न मिलने की स्थिति में
अपील प्राधिकरण/समिति के अध्यक्ष अथवा राज्य
विधिक सेवाएँ प्राधिकरण के माननीय कार्यकारी
अध्यक्ष के समक्ष दायर की जा सकती है और
अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।
#7
प्राधिकरण से प्राप्त वकील से शिकायत होने
पर उसकी शिकायत संबंधित जिला विधिक सेवाएँ
 प्राधिकरण में की जा सकती है।

  कोर्ट फीसप्रोसेस फीस और टाइपिंग शुल्क की
  अदायगी  प्राधिकरण के द्वारा की जाएगी।
  यह सारा व्यय सरकार के द्वारा किया जाता है।

यदि आप मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के
अधिकारी हैं तो प्राधिकरण से प्राप्त वकील को
आपको कोई फीस नहीं अदा करनी होगी।
#8
मुफ्त कानूनी सलाह उच्च न्यायालय विधिक
सेवाएँ समिति एवं सभी जिला न्यायालय परिसरों
में स्थित जिला विधिक सेवाएँ प्राधिकरण से
अधिनियम के अनुरूप सभी व्यक्ति प्राप्त कर सकतें हैं।

 महिला चाहे वह आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है या
नहीमुफ्त कानूनी सहायता की अधिकारी है।

#9
प्रलंबित केस के किसी भी स्तर पर कानूनी सहायता
प्रदान की जा सकती है। इसके अतिरिक्त मुफ्त
कानूनी सहायता के लिए योग्य व्यक्तियों को मुकदमें
से पूर्व भी कानूनी सहायता प्राप्त हो सकती है।

यदि प्रार्थी निरक्षर है या लिखने की स्थिति में नहीं
 है तो विधिक सेवाएं प्राधिकरण/समिति का सचिव
 अथवा अन्य कोई अधिकारी उसके मौखिक बयान
को रिकार्ड करेगा और उस रिकार्ड पर उसके
अंगूठे का निशान/हस्ताक्षर लेगा और उस रिकार्ड
को उसके प्रार्थना-पत्र के समान ही समझा जाएगा।

#10
 वे किन्नर जिनकी सालाना आय लाख रू. से कम
हैंमुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के अधिकारी है।

     जेल में बंद कैदियों को कानूनी सहायता जेल में स्थित
     लीगल सर्विसिज क्लीनिक में कानूनी सहायता
   अधिवक्ता के माध्यम से प्रदान की जाती है।

 न्यायालय के समक्ष पहली बार प्रस्तुत होने वाले
कैदी की ओर से कोई वकील न होने की स्थिति
में न्यायालय के द्वारा प्राधिकरण की ओर से उस
 न्यायालय में नियुक्त रिमांड एडवोकेट प्रतिदिन
(जिसमें छुट्टी के दिन भी सम्मिलित हैं)प्रदान
किया जाता है।
#11
सभी बाल कल्याण समितियोंकिशोर न्याय बोर्ड
एवं ऑल इंडिया लीगल एड सेल ऑन चाइल्ड राइटस
में भी प्राधिकरण की ओर से अधिवक्ता नियुक्त किए
गए है।
       thank you 

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5}क्या दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार है?

6}हिंदू उत्तराध‌िकार अध‌िनियम से पहले और बाद में हिंदू का वसीयत करने का अध‌िकार

7}निःशुल्क कानूनी सहायता-

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#12


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