क्या दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार है?-----------------
#1 हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने एक अनोखा मामला आया. मामला था कि अगर पति की मौत हो जाती है और उन्होंने दो शादियाँ की हैं तो मौत के बाद मिलने वाले सरकारी मुआवज़े का हक़दार कौन होगा, पहली पत्नी या दूसरी पत्नी? महाराष्ट्र रेलवे पुलिस में काम करने वाले एक सब-इंस्पेक्टर की मौत कोविड-19 से हो गई थी. वहीं राज्य सरकार ने कोविड-19 के दौरान ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए 50 लाख के इंश्योंरेस का प्रावधान किया है.
इस मामले में इंश्योंरेस, पुलिस वेलफ़ेयर फ़ंड और ग्रेच्युटी मिलाकर ये रक़म क़रीब 65 लाख थी.
जब ये रक़म देने की बारी आयी तो दूसरी पत्नी से पैदा हुई बेटी ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. उन्होंने कोर्ट से अपील की कि कोर्ट उन्हें और उनकी मां को भूखा और बेघर होने से बचाया जाए और इसके लिए मुआवज़े की रक़म को समानुपात में बांटे.
इस मामले की सुनवाई जस्टिस की बेंच कर रही थी.
#2 मृतक की पहली पत्नी की बेटी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई में शामिल हुईं. उनका दावा था कि उन्हें मृतक की दूसरी शादी के बारे में पता तक नहीं था.
दूसरी पत्नी के वकील ने दावा किया कि मृतक की पहली पत्नी, दूसरी शादी के बारे में जानती थीं और मृतक दूसरी पत्नी और उनकी बेटी के साथ धारावी में रेलवे कॉलोनी में रह रहे थे.
दूसरी पत्नी के वकील ने बीबीसी को बताया कि मृतक की पहली शादी साल 1992 में हुई थी और उन्होंने साल 1998 में दूसरी शादी की.
उनके वकील का कहना है कि दोनों शादियों का रजिस्ट्रेशन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत करवाया गया.
अब तक जो मामला मुआवज़े की रक़म के बंटवारे तक ही सीमित था अब उसमें एक पेंच यह भी फँस गया कि कौन सी शादी मान्य मानी जाएगी.
#3 दूसरी शादी पर क्या कहता है हिंदू मैरिज एक्ट
हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन-5 के अनुसार, शादी के समय वर या वधु पहले से शादीशुदा नहीं होने चाहिए.
कोई भी महिला और पुरुष दूसरी शादी तभी कर सकते हैं जब उनकी पहली शादी या तो रद्द हो चुकी हो, या पहले पार्टनर की मौत हो चुकी हो, या फिर उनके बीच तलाक़ हो चुका हो.
वहीं भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, वही व्यक्ति संपति का अधिकारी हो सकता है जिसका नाम 'विल' में उसने मरने से पहले दिया हो.
लेकिन अगर 'विल' ही न बनी हो तो ऐसी स्थिति में संपत्ति का अधिकार किसके पास होगा?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के Section 8 में संपति का अधिकारी होने के लिए चार क्लास बनाई गई हैं और Section 10 ये बताता है कि क्लास वन में कैसे संपत्ति बांटी जाएगी.
#4 दिल्ली ज़िला न्यायालय में वकील इस बारे में जानकारी देते हैं, "हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संपति के अधिकार को चार कैटेगरी में बांटा गया है जिसमें सबसे पहला हक़ या कहें क्लास वन कैटेगरी में पत्नी, बच्चे, मां, अगर बेटे की मौत हो चुकी है तो उसकी विधवा और बच्चे आते हैं लेकिन अगर बेटी की मौत हो चुकी है तो ऐसी स्थिति में संपति में हक़दार केवल बच्चे होंगे और पति को कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. इस अधिनियम के तहत सभी को उसके द्वारा अर्जित की गई संपति में बराबर का हक़ मिलेगा."
अगर क्लास वन में संपति का अधिकार पाने के लिए कोई उत्ताराधिकारी ही नहीं है तो ऐसी स्थिति में संपति का अधिकार क्लास टू में चला जाता है जिसमें पिता के अलावा भाई-बहन और दूसरे रिश्तेदारों को अधिकार मिल जाता है.
#5 वकील का कहना है, "हिंदू विवाह अधिनियम 1955 से पहले हिंदुओं में एक से ज़्यादा शादी मान्य क़रार दी जाती थी यानी अगर किसी व्यक्ति की दो पत्नियां होती थीं तो वो शादी क़ानूनी तौर पर मान्य थी. पति की मृत्यु होने पर विधवाओं और बच्चों का भी संपति पर अधिकार था लेकिन उसको तीन हिस्सों में बांटा जाता था जिसमें एक हिस्सा पत्नियों को और अगर दोनों पत्नियों से मृतक के बच्चे हैं तो वो बच्चों में एक-एक हिस्सा बंट जाता था लेकिन अगर कोई शादी इस अधिनियम के लागू होने के बाद होती है तो ऐसी स्थिति में दूसरी शादी मान्य नहीं मानी जाती लेकिन अगर उस रिश्ते से कोई संतान होती है तो ऐसी स्थिति में बच्चा क़ानूनी रूप से संपति का अधिकारी होगा क्योंकि क़ानून बच्चे को नाजायज़ नहीं मानता."
#6 लेकिन क़ानून ये भी कहता है कि अगर किसी ने हिंदू विवाह अधिनियम के आने से पहले दो शादियां की थीं तो वो अवैध नहीं मानी जाएगी लेकिन इस अधिनियम के आने के बाद अगर कोई व्यक्ति दूसरी शादी करता है तो दूसरी शादी मान्य नहीं होगी.
इसके आगे वकील बताती हैं, "अगर कोई व्यक्ति दूसरे धर्म की महिला से शादी करता है तो ऐसी स्थिति में वो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्य नहीं है लेकिन अगर उसने दूसरी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के ज़रिए रजिस्टर करवाया है तो ये देखना होगा कि उसने सभी नियमों को कैसे पूरा किया. अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करके शादी करता है तो ऐसे में संपति के अधिकार के प्रावधान और जटिल हो जाते हैं."
लेकिन अगर मरने से पहले कोई व्यक्ति विल बनवाकर जाता है तो वो अपनी अर्जित संपति को किसी के भी नाम कर सकता है. हालांकि इसके ख़िलाफ़ सगे-संबंधी याचिका डाल सकते हैं लेकिन उसके लिए मज़बूत आधार होना ज़रुरी होता है.
अन्य धर्मों में क्या हैं प्रावधान?
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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से पहले और बाद में हिंदू का वसीयत करने का अधिकार
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#8 " मुस्लिम में जहां शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग क़ानून है और क्योंकि भारत में ज्यादातर सुन्नी हैं और इनमें से भी अधिकतर हनफ़ी क़ानून को मानते हैं तो ऐसे में किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी विधवा के साथ जो भी मेहर की रक़म तय की गई होती है वो सबसे पहले दी जाती है. फिर ये देखा जाता है कि कफ़न-दफ़न का ख़र्च, ख़िदमत में लगे लोगों और जो उधार लिया था वो चुकाया जाए और जो बचता है उसका एक तिहाई विरासत के तौर पर दिया जा सकता है. ईसाइयों में एक तिहाई पत्नी के पास जाता है और दो तिहाई बच्चों में बंट जाता है और अगर बच्चे नहीं हैं तो आधा हिस्सा पत्नी को और आधा हिस्सा रिश्तेदारों को चला जाता है."
इस मामले पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोशनी डालते हुए दूसरी पत्नी के वकील ने बताया है कि इस मामले में कोर्ट ने कहा कि पहली पत्नी और दोनों शादियों से हुई बेटियों को मुआवज़े एक-एक तिहाई हिस्सा मिलेगा.
लेकिन पिता की जगह पर किसे नौकरी मिलेगी और दूसरे मसलों पर दोनों परिवार मिलकर सेटलमेंट कर सकते हैं.
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