सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पत्नी गुजारे भत्ते की मांग कब कर सकती है। कहां होगा केस दर्ज

CRPC, की धारा-125 के तहत // पत्नी गुजारे भत्ते की मांग  कब कर सकती है।  #1  कहां होगा केस दर्ज   maintenance to wife under section 125 crpc       CRPC, की धारा-125 के तहत   इस कानून के तहत अगर महिला को पति ने खर्चा नहीं दिया तो वह इसे पाने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकती है।     - अगर उसके साथ मारपीट की गई है तो वह अलग रहकर गुजारा भत्ता मांग सकती है। महिला के पति ने अगर दूसरी महिला को अपने साथ रख लिया हो तो भी वह अलग रहकर गुजारा भत्ता मांग सकती है।हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस ऐक्ट की धारा-18 के तहत भी अर्जी दाखिल की जा सकती है। #2 - घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग पत्नी कर सकती है।हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस ऐक्ट की धारा-18 के तहत भी अर्जी दाखिल की जा सकती है। - घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग पत्नी कर सकती है। अगर पति और पत्नी के बीच तलाक का केस चल रहा हो तो वह हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता मांग सकती है। #3 पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो तलाक क...

विधवाओं के संपत्ति अधिकार //widow's right in husband's property

  विधवाओं के संपत्ति अधिकार #1 widow's right  in  husband's property विधवाओं के  संदर्भ में भारतीय समाज विकसित हो रहा है। कुछ साल पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट  ने एक मामला सुना जहां एक मृत व्यक्ति के भाई ने विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 की धारा 2 का हवाला दिया और जोर देकर कहा कि उसकी बहू जिसने पुनर्विवाह किया था उसे विरासत में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए अपने पूर्व पति की संपत्ति। हालांकि, अदालत ने फैसला सुनाया कि एक विधवा के पास अपने पूर्व पति की संपत्तियों पर अधिकार हैं, भले ही उसने दोबारा शादी की हो, क्योंकि वह कक्षा 1 उत्तराधिकारी के रूप में अर्हता प्राप्त करेगी, जबकि पति के रिश्ते को द्वितीय श्रेणी उत्तराधिकारी माना जाएगा। #2  ब्रिटिश शासन के तहत लागू होने वाले कानून ने हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को वैध बना दिया था। यद्यपि यह एक ऐतिहासिक निर्णय था, लेकिन यह विधवाओं से वंचित था, जिन्होंने अपने पति के गुणों में अपना हिस्सा हासिल करने से पुनर्विवाह किया था। हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 की धारा 2 के अनुसार, "सभी अधिकार और ...

एक से ज्यादा लोगों के बीच कैसे बांटी जाती है प्रॉपर्टी //

   property distribution.  एक से ज्यादा लोगों के बीच  कैसे बांटी जाती है प्रॉपर्टी,  #1   यहां जानिए हर छोटी-बड़ी बात         अगर प्रॉपर्टी परिवार के लोगों के बीच बांटनी हो तो बंटवारानामा बनवाया जाता है। इस दस्तावेज के जरिए कानूनी तौर पर प्रॉपर्टी के सभी वारिसों को हिस्सा दिया जाता है और वह इसके मालिक बन जाते हैं। लागू होने वाले कानून के तहत हर सह-मालिक को उसका हिस्सा दिया जाता है। बंटवारे के बाद हर प्रॉपर्टी को नया टाइटल मिलता है और हर सह-मालिक दूसरे के हिस्से में अपना हित छोड़ देता है। कम शब्दों में कहें तो यह एेसी प्रक्रिया है, जिसमें संपत्ति का सरेंडर और अधिकारों का ट्रांसफर शामिल है। जिस शख्स को जो हिस्सा मिलता है, वही उसका नया मालिक बन जाता है और अपनी मर्जी से वह उस संपत्ति के साथ जो चाहे व्यवहार कर सकता है यानी उसे बेचने, ट्रांसफर, एक्सचेंज या गिफ्ट के तौर पर देने का अधिकार उसी के पास आ जाता है।         आपसी सहमति: आपसी सहमति के मामले में बंटवारानामा प्रॉपर्टी के सह-मालिकों के बीच होता है। लेकिन इस...

पत्नी का कानूनी अधिकार क्या है // legal right of wife. patni ke adhikar

legal right of wife. patni ke adhikar  #1 पत्नी का कानूनी  अधिकार // patni ke adhikar 1. स्त्रीधन का अधिकार - एक पत्नी के पास उसके सभी स्त्रीधन के स्वामित्व अधिकार हैं, उदाहरण के लिए शादी से पहले और उसके बाद दिए गए उपहार और धन। स्त्रीधन के स्वामित्व के अधिकार पत्नी के हैं, भले ही इसे अपने पति या उसके ससुराल वालों की हिरासत में रखा गया हो। #2 2. निवास का अधिकार - एक पत्नी को वैवाहिक घर में रहने का अधिकार है जहां उसका पति रहता है, भले ही यह एक पूर्वज घर, एक संयुक्त परिवार का घर, एक आत्मनिर्भर घर या एक किराए पर घर हो। #3 3. रिश्ते का अधिकार - एक हिंदू पति का अवैध संबंध नहीं हो सकता है। वह एक और लड़की से शादी नहीं कर सकता है जब तक कि वह कानूनी रूप से तलाकशुदा न हो। एक पति से व्यभिचार का आरोप लगाया जा सकता है अगर वह किसी और विवाहित महिला के साथ रिश्ते में है। उनकी पत्नी को अपने अतिरिक्त वैवाहिक संबंधों के आधार पर तलाक के लिए फाइल करने का अधिकार भी है। #4 4. गरिमा और आत्म सम्मान के साथ जीने का अधिकार - पत्नी को अपने जीवन को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है औ...

ये लोग नहीं बन सकते। प्रॉपर्टी के वारिस // हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 :

प्रॉपर्टी के वारिस कौन   नहीं हो सकते।     हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम1956 : #1 ये लोग नहीं बन सकते। प्रॉपर्टी के वारिस      हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम1956 :हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में एेसी कई स्थितियां हैं, जिसके तहत किसी शख्स को वसीयत पाने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है, या वह उसके लिए पहली पसंद नहीं होता। आइए आपको उन लोगों के बारे में बताते हैं जो कानून के मुताबिक प्रॉपर्टी के वारिस नहीं हो सकते। #2 सौतेला: जिस शख्स से प्रॉपर्टी पाने की उम्मीद है, अगर उससे रिश्ता वही रहता है तो जैविक संतान को प्राथमिकता दी जाती है। सौतेले वह बच्चे होते हैं, जिसके मां या बाप ने दूसरी शादी की है। एेसे मामलों में, पिता के जैविक बच्चों (पिछली पत्नी से) का प्रॉपर्टी पर पहला अधिकार होता है। संक्षेप में कहें तो जैविक बच्चों का अधिकार सौतेले बच्चों से ज्यादा होता है। #3 एक साथ मौत के मामले में: यह पूर्वानुमान पर आधारित है। अगर दो लोग मारे गए हैं और अगर यह अनिश्चित हो जाता है कि किसने दूसरे को बचाया तो उत्तराधिकार के लिए इसका विरोध होने तक यह माना ज...

संपत्तिपर प्रतिकूल कब्जा .

(Adverse  Possession)// pratikul kabja संपत्तिपर  प्रतिकूल कब्जा       . #1 क्या है कानून: उदाहरण के तौर पर रमेश कुमार का दिल्ली में घर है, जिसे उन्होंने रहने के लिए अपने भाई सुरेश कुमार को दिया हुआ है। 12 साल बाद सुरेश कुमार को प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार है और उसका अपने भाई से झगड़ा होता है तो कानून के मुताबिक पोजेशन (possession) सुरेश को मिलेगा (but not ownership)। इसके कहते हैं प्रतिकूल कब्जा यानी एडवर्स पोजेशन #2 (Adverse Possession)।   हालांकि सामान्य कब्जे की स्थिति में स्वामित्व  (ownership) नहीं मिलता, लेकिन प्रतिकूल कब्जे के मामले में वह संपत्ति के मालिकाना हक पर दावा कर सकता है। एेसी स्थिति में अन्यथा साबित होने तक माना जाता है कि पोजेशन  (possession) कानूनी है और इसकी इजाजत दी गई है। प्रतिकूल कब्जे के तहत जरूरतें सिर्फ यही हैं कि पोजेशन  (possession)जबरदस्ती या गैर कानूनी तरीकों से हासिल न किया गया हो। #3 लिमिटेशन एक्ट : लिमिटेशन एक्ट, 1963 कानून का अहम हिस्सा है, जो प्रतिकूल कब्जे का विस्तार है। इस...

विरासत की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी का कितना अधिकार है?//

पुरखों की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी का अधिकार  // हिंदू उत्तराधिकार कानून,2005  विरासत की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी का कितना अधिकार है? #1 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में बदलाव हुआ है. इसमें पैतृक प्रॉपर्टी में बेटियों को बराबर का हिस्सा दिया गया है. माता-पिता को गुजरे सात साल बीत चुके हैं.  कि क्या विरासत की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी का कानूनी हक होता है? खासतौर से यह देखते हुए कि माता-पिता का निधन कई साल पहले हो चुका है.  2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में बदलाव हुआ है. इसमें पैतृक प्रॉपर्टी में बेटियों को बराबर का हिस्सा दिया गया है. विरासत की प्रॉपर्टी के मामले में अब बेटी का भी जन्म से हिस्सा बन जाता है. वहीं, खुद खरीदी गई प्रॉपर्टी वसीयत के अनुसार बांटी जाती है. #2 अगर पिता का निधन बिना वसीयत के हो जाता है तो पैतृक और पिता की प्रॉपर्टी पर बेटी का बेटे जितना अधिकार होता है.  इस मामले में बेटी के शादीशुदा होने से कोई लेनादेना नहीं है. शादीशुदा बेटी का कुंवारी बेटी जितना ही अधिकार है. यहां एक बात जरूर ध्यान देने वाली ह...

संपत्ति पर कब्जा करने वाला उसका मालिक नहीं हो सकता //सुप्रीम कोर्ट:

  संपत्ति पर कब्जा करने वाला  उसका मालिक नहीं हो    सकता // #1 pratikul kabja adverse possession सुप्रीम कोर्ट... ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि किसी संपत्ति पर अस्थायी कब्जे करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति का मालिक नहीं हो सकता। साथ ही टाइटलधारी भूस्वामी ऐसे व्यक्ति को बलपूर्वक कब्जे से बेदखल कर सकता है, चाहे उसे कब्जा किए 12 साल से अधिक का समय हो गया हो।   शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ऐसे कब्जेदार को हटाने के लिए कोर्ट की कार्यवाही की जरूरत भी नहीं है। कोर्ट कार्यवाही की जरूरत तभी पड़ती है जब बिना टाइटल वाले कब्जेधारी के पास संपत्ति पर प्रभावी/ सेटल्ड कब्जा हो जो उसे इस कब्जे की इस तरह से सुरक्षा करने का अधिकार देता है जैसे कि वह सचमुच मालिक हो। #2 फैसले में कहा कि कोई व्यक्ति जब कब्जे  की बात करता है तो उसे संपत्ति पर कब्जा टाइटल दिखाना होगा और सिद्ध करना होगा कि उसका संपत्ति पर प्रभावी कब्जा है। लेकिन अस्थायी कब्जा (कभी छोड़ देना कभी कब्जा कर लेना या दूर से अपने कब्जे में रखना) ऐसे व्यक्ति को वास्तविक मालिक के खिलाफ अधिकार नहीं देत...

12 वर्ष के बाद हाथ से निकल जाएगी संपत्ति, सुप्रीम कोर्ट //संपत्तिपर प्रतिकूल कब्जा

संपत्तिपर  प्रतिकूल कब्जा/ /pratikul kabja >#1 हाइलाइट्स सुप्रीम कोर्ट ने लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के हवाले से बड़ा फैसला दिया है कोर्ट ने कहा कि किसी ने दूसरे की अचल संपत्ति पर 12 साल तक अवैध कब्जा रखा तो उसे कानूनी अधिकार मिल जाएगा कोर्ट के फैसले से स्पष्ट है कि 12 वर्षों के अंदर अवैध कब्जा नहीं हटाया गया तो संपत्ति हाथ से निकल सकती है तीन जजों की बेंच ने की कानून की व्याख्या  लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के तहत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि 12 साल जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में 30 वर्ष है। यह मियाद कब्जे के दिन से शुरू होती है ।#2 अगर आपकी किसी अचल संपत्ति पर किसी ने कब्जा जमा लिया है तो उसे वहां से हटाने में लेट लतीफी नहीं करें। अपनी संपत्ति पर दूसरे के अवैध कब्जे को चुनौती देने में देर की तो संभव है कि वह आपके हाथ से हमेशा के लिए निकल जाए। दर असल, सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक बड़ा फैसला दिया है #3 12 वर्ष के अंदर उठाना होगा कदम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अगर वास्तविक या वैध मालिक अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्ज...

संविधान द्वारा विवाहित महिलाओं को दिया गया अधिकार//

women rights // rights of women #1 हमारे संविधान में विवाहित महिलाओं को कई अधिकार दिए गए हैं जिसमें ये 3 प्रमुख हैं:     स्त्रीधन का अधिकार: इसमें कहा गया है कि महिला को अपने स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है। आपको बता दें कि स्त्रीधन महिला को शादी के पहले या बाद में मिलने वाले गिफ्ट और पैसे हैं जो उन्हें कोई भी दे सकता है। #2 निवास का अधिकार: पत्नी को अपने वैवाहिक घर में जहां भी पति रहता है वहां रहने का अधिकार है फिर चाहे वो पुश्तैनी घर, संयुक्त परिवार, खुद का घर या किराये का घर हो।#3     प्रतिबद्ध रिश्ते का अधिकार: एक हिंदु पुरुष किसी भी रुप से विवाहेतर संबंध या दूसरी शादी तब तक नहीं कर सकता है जब तक कि वो पत्नी को कानूनी रूप से तलाक ना दे दे।#4                     THANK  YOU READ MORE---- 1}गिफ्ट(Gift) की गई संपत्ति के स्वामित्व के लिए स्टाम्प ड्यूटी के भुगतान का महत्व? 2}Stay Order का क्या मतलब होता है? प्रॉपर्टी पर स्थगन आदेश क्या होता हैं? प्रॉपर्टी के निर्माण पर स्थगन आदेश कैसे होता है? 3}क्यों...

विवाह विच्छेद / हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 धारा 13, (धारा 13-ए व 13-बी)

हिन्दू विवाह अधिनियम,1955// विवाह विच्छेद (Divorce)- ground of divorce  #1 विवाह विच्छेद   हिन्दू विवाह अधिनियम,1955  धारा 13, (धारा 13-ए व 13-बी) प्रारंभिक हिन्दू विधि में तलाक या विवाह विच्छेद की कोई अवधारणा उपलब्ध नहीं थी। हिन्दू विधि में विवाह एक बार हो जाने के बाद उसे खंडित नहीं किया जा सकता था। विवाह विच्छेद की अवधारणा पहली बार हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 से हिन्दू विधि में सम्मिलित हुई। वर्तमान में हिन्दू विवाह को केवल उन्हीं आधारों पर विखंडित किया जा सकता है #2                हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 के पारित होने के बाद हिन्दू धर्म से शासित होने वाले हिन्दुओ के मध्य इस अधिनियम के पारित होने के पूर्व या पश्चात सम्पन्न हुए विवाह को धारा 13 में दिये गये प्रावधानों एवम आधारों के अनुसार विवाह विच्छेद की डिक्री दम्पति में से किसी एक के द्वारा जिला न्यायलय पेश याचिका के आधार पर पारित की जा सकती हैं।धारा 10 न्यायिक पृथक्करण एवम विवाह विच्छेद के लिए एक ही आधार है जिनके अनुसार न्यायलय न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित कर...