मंगलवार, 31 अगस्त 2021

आपराधिक मामले की जांच के दौरान पुलिस किसी अचल संपत्ति को जब्त नहीं कर सकती:

 आपराधिक मामले की जांच के दौरान पुलिस किसी अचल संपत्ति 

को जब्त नहीं कर सकती:

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया हैकोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले की 

जांच के दौरान पुलिस किसी अचल संपत्ति को जब्त नहीं कर सकतीलेकिन चल 

संपत्ति को फ्रीज करने पर कोई रोक नहीं हैCRPC की धारा 102 को लेकर 

तीन जजों की बेंच ने सहमति से यह फैसला सुनायामामला जांच के दौरान 

पुलिस द्वारा संपत्ति जब्त करने के संबंध में आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी 

CrPC की 102 की शक्तियों से संबंधित है.

       @2

बॉम्बे उच्च न्यायालय की फुल बेंच ने बहुमत के फैसले में माना था कि जांच के 

दौरान पुलिस के पास संपत्ति जब्त करने की कोई शक्ति नहीं हैमहाराष्ट्र सरकार ने 

यह कहते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी कि सर्वोच्च अदालत के 

तपस नियोगी में फैसले के अनुसार पुलिस बैंक खातों को फ्रीज कर सकती है

उसी तरह पुलिस अपराध से संबंधित संपत्ति जब्त कर सकती हैलेकिन सुनवाई 

के दौरान सुप्रीम कोर्ट राज्य की इन दलीलों से सहमत नहीं क्योंकि का मानना 

था कि इससे पुलिस द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है.

सर्वोच्‍च अदालत की पीठ ने इस फैसले में किसी मामले की आपराधिक जांच 

के दौरान किसी संपत्ति को जब्त करने का पुलिस को अधिकार देने वाली 

सीआरपीसी की धारा-102 की व्याख्या की। 

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बता दें कि सीआरपीसी की धारा 102 (1) पुलिस को आपराधिक जांच के दौरान 

अपराधी की अचल संपत्ति को सीज या जब्त करने का अधिकार देती है। इसमें 

कहा गया है कि कोई भी पुलिस अधिकारी अवैध संपत्ति या गलत तरीके से 

अर्जिक की गई अचल संपत्ति को किसी आपराधिक मामले की जांच के दौरान 

जब्‍त कर सकता है। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा की व्‍याख्‍या कर दी है। 

ऐसे में अब पुलिस को किसी आपराधिक मामले की जांच के दौरान अचल संपत्ति 

को जब्‍त करने का अधिकार नहीं होगा।

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शनिवार, 28 अगस्त 2021

कोर्ट मैरिज के लिए प्रक्रिया क्या है ?Court Marriage Process

 Court Marriage (कोर्ट मैरिज)  क्या है ?

Process क्या होता है ?

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इसके लिए Online Registration कैसे होगा और इसके (Rules) रूल्स क्या है ? 

 कोर्ट मैरिज आमतौर पर होने वाली शादियों से बिलकुल अलग होती है। इसे किसी परंपरागत समारोह के बिना ही कोर्ट में मैरिज ऑफिसर के सामने संपन्न किया जाता  है।

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विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act)के अंतर्गत ही सभी कोर्ट मैरिज की जाती हैं। कोर्ट मैरिज किसी भी धर्म संप्रदाय अथवा जाति के बालिग युवक-युवती के बीच हो सकती है। किसी विदेशी  भारतीय की भी कोर्ट मैरिज हो सकती है।कोर्ट मैरिज करने के लिए मैरिज रजिस्ट्रार के समक्ष आवेदन करना होता है।

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कोर्ट मैरिज के लिए प्रक्रिया  Court Marriage Process-

कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया पूरे भारत में समान ही है। इसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अंतर्गत शासित किया जाता है। इस अधिनियम के द्वारा विभिन्न धर्म के स्त्री पुरुष नागरिक समारोह में विवाह सम्पन्न कर सकते है।

कोर्ट मैरिज के अंतर्गत  केवल हिंदू का ही बल्कि मुस्लिमईसाईसिखजैन और बौद्ध धर्म के स्त्री पुरुष का भी विवाह शामिल होता हैं। कोर्ट मैरिज किसी भी धर्मसंप्रदायया जाति के युवक -युवती के बीच हो सकती है। लेकिन इसके लिए प्रमुख शर्त यह है कि दोनों को बालिग होना चाहिए। किसी विदेशी और भारतीय की भी कोर्ट मैरिज हो सकती है।

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कोर्ट मैरिज के लिए शर्तें (Conditions for Court Marriage)

  • पूर्व में कोई विवाह ना हुआ हो -यह  नियम बताता है कि इस कानूनी प्रक्रिया के तहत पहले दोनों पक्ष यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका कोई भी पूर्व विवाह तो नहीं हुआ है अगर हुआ है तो वह वैध ना हो। दूसरी बात दोनों पक्षों की पहली शादी से जुड़े पति या पत्नी जीवित ना हों।
  • @5
  • लीगली रेडी(LegallyReady)इसका अर्थ है कि आपसी रिश्तेदारी में शादी नहीं हो सकती है।</ span> यानि बुआबहन आदि। यह नियम केवल हिन्दुओं पर लागू है। मैरिज के समय दोनों ही पक्ष यानि वर  वधू अपनी वैध सहमति यानि ‘लीगली रेडी’ देने के लिए सक्षम होने चाहिए।
    • सक्षम का अर्थ है कि प्रक्रिया में स्वेच्छा से शामिल होना।
    • उम्र बहुत मायने रखती हैकोर्ट मैरिज के लिए पुरुष की आयु 21 वर्ष से ज्यादा तथा महिला की उम्र 18 वर्ष से ज्यादा होना बहुत अनिवार्य है साथ ही दोनों ही मानसिक रूप से स्टेबल यानि स्वस्थ होने चाहिए. 
    • @6
    • कोर्ट मैरिज प्रक्रिया के चरण-
      • विवाह के लिए विवाह की सूचना का आवेदन – इसके लिए कोर्ट में सर्वप्रथम जिले के विवाह अधिकारी(District Marriage Officer) को सूचित करना होगा |
      • #  जिसकी सूचना विवाह में शामिल होने वाले पक्षों द्वारा लिखित रूप में दी जाएगी।
      • कोर्ट मैरिज की सूचना उस जिले के विवाह अधिकारी को दी जाएगी। सूचना के स्वरूप के तहत आयु और निवास स्थान यानि रेजिडेंस(Residence) के प्रमाण पात्र संलग्न करने  होंगे।
      • सूचना का प्रकाशित होना :  जिले के विवाह अधिकारी (District Marriage Officer), जिनके सामने सूचना जारी की गई थीवो सूचना को प्रकाशित करेंगे। सूचना की एक प्रति कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान पर तथा एक प्रति उस जिला कार्यालय में जहां विवाह पक्ष स्थाई रूप से निवासी हैंप्रकाशित की जाएगी।@7
      • विवाह में आपत्ति का दर्ज होना : कोई भी व्यक्ति इसे दर्ज करा सकता है इसका अर्थ है कोई भी व्यक्ति विवाह में आपत्ति दर्ज करा सकता हैजिसका लड़का या लड़की से दूर या पास का रिश्ता हो। यदि दी गई आपत्तियों का कोई आधार होगा  तो ही उन पर जांच कराई जाएगी। ये आपत्ति (Objection) संबंधित जिले के विवाह अधिकारी(District Marriage Officer) के सामने दर्ज होती है 
      • आपत्ति(Objection) होने पर : आपत्ति किए जाने के 30 दिन के भीतर विवाह अधिकारी को जांच-पड़ताल करना होता है। यदि की गई आपत्तियों को सही पाया जाता हैतो विवाह संपन्न नहीं हो होगा।  
      • आपत्तियों  पर कोई भी पक्ष अपील दर्ज कर सकता है। अपील आपके स्थानीय जिला न्यायालय (Local District Court) में विवाह अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में दर्ज की जा सकती है। और यह आपत्ति के स्वीकार होने के 30 दिन के भीतर ही दर्ज की जा सकती है।
      • @8
      •  इसके बाद विवाह अधिकारी की उपस्थिति में दोनों पक्ष और तीन गवाहघोषणा पर हस्ताक्षर करते हैं। विवाह अधिकारी के हस्ताक्षर भी होते हैं। इस घोषणा का लेख और प्रारूप अधिनियम की अनुसूची 111 के अनुसार होगा 
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