मंगलवार, 30 जून 2020

CrPC  482 के तहत शक्ति का इस्तेमाल उस आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है, जो मंजूरी, तुच्छ मामलों या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए पहली नजर में बुरी है। सुप्रीम कोर्ट


CrPC  482 के तहत शक्ति का इस्तेमाल उस आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है, जो मंजूरी, तुच्छ मामलों या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए पहली नजर में बुरी है।: सुप्रीम कोर्ट-----
#1
Power U/s 482 CrPC Can Be Exercised To Quash Criminal Proceedings Which Are Ex Facie Bad For Want Of Sanction:

               सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत शक्ति का इस्तेमाल उस आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है, जो मंजूरी, तुच्छ मामलों या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए पहली नजर में बुरी है।
  #2                              इस मामले में, शिकायतकर्ता ने एक अपराध के संबंध में जांच के दौरान, हिरासत में रहने के दौरान पुलिस ज्यादती का आरोप लगाया। मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के निजी शिकायत का संज्ञान लेने के आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी ( सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका दायर करके आरोप लगाया गया था कि आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की ओर से कोई मंज़ूरी नहीं थी। हाईकोर्ट ने आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया और इसके लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता के साथ, मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को शिकायत वापस भेज दी। उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखा गया था।                
  #3
                  न्यायमूर्ति आर बानुमति और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए कहा कि वर्तमान में शिकायत ड्यूटी के रंग के तहत एक अधिनियम से संबंधित है। इसलिए, अदालत ने पाया कि, मंजूरी एक कानूनी आवश्यकता है जो न्यायालय को संज्ञान लेने का अधिकार देती है और उच्च न्यायालय को अपीलकर्ता को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 245 के तहत आरोपमुक्त करने एक आवेदन के लिए अपीलकर्ता को छोड़ने के बजाय शिकायत को रद्द करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए था।                  
#4                      यह कहा गया: " जबकि इस न्यायालय ने डीटी विरुपाक्षप्पा (सुप्रा) में यह दावा किया है कि उच्च न्यायालय ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए, एक शिकायत का संज्ञान लेते हुए, ट्रायल कोर्ट के एक आदेश को नहीं रद्द ना करके गलती की है।" माताजोग दोबे केस में न्यायालय ने यह हमेशा जरूरी नहीं माना कि शिकायत दर्ज होते ही और उसमें शामिल आरोपों के तहत धारा 197 के तहत मंजूरी की आवश्यकता पर विचार किया जाए। शिकायतकर्ता यह नहीं भी बता सकता है कि अपराध करने वाले अधिनियम को आधिकारिक कर्तव्य और / या कर्तव्य के रंग के तहत किया जाना है। हालांकि बाद में ट्रायल के दौरान या पुलिस या न्यायिक जांच के दौरान आने वाले तथ्यों की मंजूरी की आवश्यकता स्थापित हो सकती है।                 
               इस प्रकार, मंजूरी कार्यवाही के किसी भी स्तर पर आवश्यक है ये निर्धारित नहीं किया जा सकता है ...
#5          
                  यह अच्छी तरह से तय किया गया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है जो मंजूरी,तुच्छ मामलों या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए पहली नजर में बुरी है। यदि, शिकायत के चेहरे पर, कृत्य कथित तौर पर आधिकारिक कर्तव्य के साथ एक उचित संबंध रखता है, जहां आपराधिक कार्यवाही स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण होने के पक्ष में है और पूर्ववर्ती मकसद के साथ स्थापित की गई है, तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए कार्यवाही को रद्द करने के लिए शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। पीठ ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत मंजूरी के बारे में निम्नलिखित लागू सिद्धांतों को भी दोहराया जिसे कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 170 के साथ पढ़ा गया.
#6
•            सरकार की मंजूरी, एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए, किसी आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से संबंधित किसी भी कार्य के लिए, पुलिस अधिकारी को उत्पीड़नकारी, प्रतिशोधी और तुच्छ कार्यों का सामना करने से बचाने के लिए सरकार से मंजूरी की आवश्यकता है, ये एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को अपने आधिकारिक कर्तव्यों का कुशलतापूर्वक निर्वहन करने का विश्वास दिलाएगा कि वो बिना आपराधिक कार्रवाई के, प्रतिशोध की आशंका के कार्य करे जिससे वह अपराध संहिता की धारा 197 के तहत संरक्षित होगा। प्रक्रिया, कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 170 के साथ पढ़ी जाएगी। उसी समय, अगर पुलिसकर्मी ने गलत किया है, जो एक अपराध बनाता है और अभियोजन के लिए उसे उत्तरदायी बनाता है, तो उसे उपयुक्त सरकार से मंजूरी के साथ मुकदमा चलाया जा सकता है।
#7                  एक पुलिस अधिकारी द्वारा किया गया प्रत्येक अपराध कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 170 के साथ पढ़ी गई दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 को आकर्षित नहीं करता है। कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 170 के साथ पढ़े गए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत दी गई सुरक्षा की अपनी सीमाएं हैं। सुरक्षा केवल उन्ही को मिलती है, जब लोक सेवक द्वारा किया गया कथित कृत्य उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से जुड़ा होता है और आधिकारिक कर्तव्य आपत्तिजनक कृत्य के लिए केवल एक लबादा नहीं होता है।
#8                      पुलिस अधिकारी के कर्तव्य के दायरे के बाहर पूरी तरह से अपराध पर, निश्चित रूप से मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। एक उदाहरण का हवाला देते हुए, एक पुलिस जो घरेलू मदद पर हमला करता है या घरेलू हिंसा में लिप्त होता है, वह निश्चित रूप से सुरक्षा का हकदार नहीं होगा।
हालांकि यदि कोई कृ्त्य किसी दर्ज आपराधिक मामले की जांच के आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से जुड़ा है, तो वो निश्चित रूप से कर्तव्य के रंग में है, चाहे वह कृत्य कितना भी अवैध हो।
  #9                  यदि आधिकारिक ड्यूटी करने में एक पुलिसकर्मी ने कर्तव्य से ज्यादा काम किया है, लेकिन कृत्य और आधिकारिक कर्तव्य के प्रदर्शन के बीच एक उचित संबंध है, तो इस तथ्य का प्रयोग ड्यूटी की अधिकता के आधार पर नहीं होगा।
                                  पुलिसकर्मी को उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए सरकार की मंजूरी के संरक्षण से वंचित करना दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 और कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 170 की भाषा और कार्यकाल यह पूरी तरह स्पष्ट करता है कि न केवल आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में किए जाने वाले कृत्यों के लिए मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, यह एक कृत्य के लिए भी आवश्यक है जो आधिकारिक कर्तव्य और / या इस तरह के कर्तव्य या प्राधिकार से अधिक के रंग के तहत किए गए कार्य के निर्वहन में किया जाता है।
  #10                   यह तय करने के लिए कि क्या मंजूरी आवश्यक है, परीक्षण यह है कि क्या कृत्य आधिकारिक कर्तव्य के साथ पूरी तरह से जुड़ा हुआ है या क्या आधिकारिक कर्तव्य के साथ उचित संबंध है या नहीं। एक पुलिसकर्मी या किसी अन्य लोक सेवक के एक कृ्त्य के मामले में आधिकारिक कर्तव्य के साथ असंबद्ध किसी अनुमोदन का सवाल नहीं हो सकता है। हालांकि, अगर किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ आरोपित कार्य उचित रूप से उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से जुड़ा है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पुलिसकर्मी ने अपनी शक्तियों का दायरा पार कर लिया है और / या कानून के चार कोनों से परे काम किया है।
  #11                    अगर पुलिसकर्मी के खिलाफ दायर की गई शिकायत में कथित तौर पर किया गया कृत्य किसी आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से जुड़ा हुआ है, तो उस पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता है, जब तक कि उपयुक्त सरकार की अपेक्षित मंजूरी दंड प्रक्रिया संहिता धारा 197 और / या कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 170 के तहत प्राप्त नहीं होती.

#12

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#14


 
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शनिवार, 20 जून 2020

महिला की गिरफ़्तारी को लेकर क्या कहता है क़ानून

                  "बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जिसमें महिला को गिरफ़्तार करने के बाद उनके साथ यौन हिंसा और प्रताड़ना की बात सामने आई, इन्हीं सारे मामलों को देखते हुए क़ानून बनाया गया कि मामला चाहे जो भी किसी भी महिला को शाम छह बजे के बाद और सुबह छह बजे के पहले गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता." 

 

"उसे हाउस-अरेस्ट किया जा सकता है और वो भी महिला पुलिस द्वारा ही. लेकिन किसी भी सूरत में दिन ढलने के बाद उसकी गिरफ्तारी ग़ैर-काननी है."
#2
 सिर्फ़ महिलाओं के लिए नहीं, हर गिरफ़्तारी के कुछ तय नियम हैं.
"बात महिलाओं की गिरफ़्तारी  करें तो सबसे अहम है कि उनकी गिरफ़्तारी दिन ढलने के बाद नहीं हो सकती. ना ही उन्हें दिन ढलने के बाद पुलिस स्टेशन बुलाया जा सकता है."

#3---------------------------------------------------------------
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क़ानूनी प्रावधान-----
⇨         अगर किसी रिपोर्ट के सिलसिले में आपको महिला से पूछताछ करनी है और दिन ढल चुका है तो पुलिस को ही उसके घर जाना होगा.
⇨         महिला की जांच एक महिला पुलिसकर्मी ही कर सकती है. कोई पुरुष पुलिसकर्मी, किसी भी सूरत में उसे हाथ नहीं लगा सकता.

⇨         अगर कोई नाबालिग बच्ची है तो उसकी जांच-पड़ताल के दौरान उसके माता-पिता या अभिभावकों का मौजूद होना अनिवार्य है. नाबालिग की जांच के दौरान पुलिस ये कभी नहीं बोल सकती कि माता-पिता को कहीं और जाना होगा. (ये नियम हर नाबालिग के लिए है.)
#4
⇨        हथकड़ी का क़ानून मुख्य रूप से महिलाओं के लिए नहीं है लेकिन ज़्यादातर लोगों को इस बारे में पता नहीं होता. इस क़ानून के तहत हथकड़ी तब तक नहीं लगाई जा सकती जब तक कि गिरफ़्तार करने आए अधिकारी के पास कोर्ट का आदेश न हो. (अगर कोई आपराधिक रिकॉर्ड हो और पुलिस को डर हो कि वह व्यक्ति भाग जाएगा, तभी उसे हथकड़ी लगाई जा सकती है)
⇨       अगर कोई महिला गिरफ़्तारी के दौरान गर्भवती है तो वह अपने साथ किसी सहयोगी की मांग कर सकती है.
⇨        अगर कोई मेडिकल जांच होनी है तो महिला अपने किसी विश्वासपात्र को अपने साथ रख सकती है. इसमें सबसे अहम ये है कि मेडिकल जांच में जो भी निकल के आता है उस पर डॉक्टर के हस्ताक्षर होना ज़रूरी है.
#5
⇨        इसके अलावा अगर कोई रिपोर्ट 24 घंटे देरी से आती है तो उसमें इस देरी का कारण भी लिखा होना चाहिए.
⇨         गिरफ़्तारी के दौरान महिला गिरफ़्तार करने आए अधिकारी से महिला उस धारा के बारे में पूछ सकती है जिसके तहत उसे गिरफ़्तार किया जा रहा है. इसके अलावा पुलिस को ये बताना अनिवार्य होता है कि गिरफ़्तारी के बाद उस महिला को कहां रखा जाएगा. हालांकि ये कानून सभी के लिए हैं.
#6
⇨        24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है.
⇨         इसके अलावा गिरफ़्तारी के बाद महिला को जिस पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा है वहां महिला पुलिस अधिकारी का होना ज़रूरी है. 

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#7

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#8

मंगलवार, 16 जून 2020

अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से कर रही हो गिरफ्तार, तो ये हैं आपके कानूनी अधिकार ----

अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से कर रही हो गिरफ्तार, तो ये हैं आपके कानूनी अधिकार ----

#1       

                            अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता यानी CRPC का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय संविधान (Constitution)के अनुच्छेद (Article) 20, 21और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है. मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित पक्ष संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे Supreme Court जा सकता है.


 

पुलिस गिरफ्तारी से संबंधित कानूनों का विस्तार ----

#2

1. CRPC की धारा 50 (1) के तहत पुलिस को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताना होगा.

2. किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को वर्दी में होना चाहिए और उसकी नेम प्लेट में उसका नाम साफ-साफ लिखा होना चाहिए.

3. CRPC की धारा 41 (B) के मुताबिक पुलिस को अरेस्ट मेमो तैयार करना होगा, जिसमें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की रैंक, गिरफ्तार करने का टाइम और पुलिस अधिकारी के अतिरिक्त प्रत्यक्षदर्शी के हस्ताक्षर होंगे.

#3

4. अरेस्ट मेमो में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से भी हस्ताक्षर करवाना होगा.

5. CRPC की धारा 50(A) के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अधिकार होगा कि, वह अपनी गिरफ्तारी की जानकारी अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सके. अगर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं है तो पुलिस अधिकारी को खुद इसकी जानकारी उसके परिवार वालों को देनी होगी.

#4

6. CRPC की धारा 54 में कहा गया है कि अगर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति मेडिकल जांच कराने की मांग करता है, तो पुलिस उसकी मेडिकल जांच कराएगी. मेडिकल जांच कराने से फायदा यह होता है कि अगर आपके शरीर में कोई चोट नहीं है, तो मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि हो जाएगी और यदि इसके बाद पुलिस कस्टडी में रहने के दौरान आपके शरीर में कोई चोट के निशान मिलते हैं तो पुलिस के खिलाफ आपके पास पक्का सबूत होगा. मेडिकल जांच होने के बाद आमतौर पर पुलिस भी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के साथ मारपीट नहीं करती है.

7. कानून के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की हर 48 घंटे के अंदर मेडिकल जांच होनी चाहिए.

#5

8. CRPC की धारा 57 के तहत पुलिस किसी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं ले सकती है. अगर पुलिस किसी को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखना चाहती है तो उसको CRPC  की धारा 56 के तहत मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी और  इस संबंध में इजाजत देने का कारण भी बताया जाएगा.

9. CRPC की धारा 41(D) के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने वकील से मिल सकता है. साथ ही वह अपने वकील और परिजनों से बातचीत कर सकता है.

#6

10. अगर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति गरीब है और उसके पास पैसे नहीं है तो उनको मुफ्त में कानूनी मदद दी जाएगी यानी उसको फ्री में वकील मुहैया कराया जाएगा.

11. Non-Cognisable Offence यानी असंज्ञेय अपराधों के मामले में गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी वारंट देखने का अधिकार होगा. हालांकि Cognisable Offence यानी गंभीर अपराध के मामले में पुलिस बिना वारंट दिखाए भी गिरफ्तार कर सकती है.

#7

12. जहां तक महिलाओं की गिरफ्तारी का संबंध है तो सीआरपीसी की धारा 46(4) कहती है कि किसी भी महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज निकलने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है हालांकि अगर किसी परिस्थिति में किसी महिला को गिरफ्तार करना ही पड़ता है तो इसके पहले एरिया मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी.

#8--------------------------------------------------

13. CRPC की धारा 46 के मुताबिक महिला को सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार करेगी. किसी भी महिला को पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं करेगा.

14. CRPC की धारा 55 (1) के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की सुरक्षा और स्वास्थ्य का ख्याल पुलिस और रखना होगा.

#9

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3}क्यों जरूरी है नॉमिनी? जानें इसे बनाने के नियम और अधिकार

4}Deaf and Dumb पीड़िता के बयान कैसे दर्ज होना चाहिए। Bombay High Court

#10

5}क्या दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार है?

6}हिंदू उत्तराध‌िकार अध‌िनियम से पहले और बाद में हिंदू का वसीयत करने का अध‌िकार

7}निःशुल्क कानूनी सहायता-

8}संपत्ति का Gift "उपहार" क्या होता है? एक वैध Gift Deed के लिए क्या आवश्यक होता है?

#11

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