गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

पति-पत्‍नी को पहले ही बतानी होगी कमाई, गुजारा भत्ता और एलिमनी पर सुप्रीम कोर्ट ने तय कीं गाइडलाइंस

 पति-पत्‍नी को पहले ही बतानी होगी कमाई, गुजारा भत्ता और एलिमनी पर सुप्रीम कोर्ट ने तय कीं गाइडलाइंस

#1}

Maintenance and Alimony rules in India: 

               दोनों पार्टियों को इनकम, खर्च के अलावा जीवन यापन के स्टैंडर्ड के बारे में दस्तावेज देना होगा ताकि उस हिसाब से स्थायी एलमनी तय हो। खर्च के तौर पर बच्चों की शादी के होने वाले खर्च को भी इसमें शामिल करना होगा। बच्चे की शादी का खर्च पति की हैसियत और कस्टम के हिसाब से तय होगा।


#1

हाइलाइट्स:

वैवाहिक विवाद में पक्षकारों को बताना होगा अपनी संपत्ति और देनदारी का ब्यौरा

गुजारा भत्ता के लिए दाखिल आवेदन की तारीख से ही मिलेगा गुजारा भत्ता

सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता और एलिमनी के लिए तय किए देश भर के लिए समग्र गाइडलाइंस

#2

नईदिल्ली

                 सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले में गुजारा भत्ता और निर्वाह भत्ता तय करने के लिए अहम फैसला दिया है और कहा है कि दोनों पार्टियों को कोर्ट में कार्यवाही के दौरान अपनी असेट और लाइब्लिटी ( संपत्ति और अपने खर्चे यानी देनदारियों) का खुलासा अनिवार्य तौर पर करना होगा। 

                सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता के लिए अदालत में आवेदन दाखिल करने की तारीख तारीख से ही गुजारा भत्ता तय होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में देश भर की जिला अदालतों, फैमिली कोर्ट के लिए गाइडलाइंस जारी किए हैं कि किस तरह से गुजारा भत्ता के मामले में आवेदन होगा और कैसे मुआवजे की रकम का भुगतान होगा।

  #1            सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आवेदन की तारीख से ही राशि का भुगतान करना होगा साथ ही पिछले किसी कार्यवाही में भुगतान किए गए राशि को अदालत एडजस्ट करेगी। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस  की बेंच ने अनुच्छेद-142 के विशेषाधिकार के तहत उक्त निर्देश जारी किए हैं। 

           सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले से पता चला कि सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता का मामला सात साल से पेंडिंग था। ये उचित होगा कि मेंटेनेंस को लेकर गाइडलाइंस जारी किया जाए।

#3             जिसके तहत गुजारा भत्ता कब से मिले, किस तरह मिले और क्या-क्या क्राइटेरिया हो ये तय होना जरूरी है। पिछले आदेश को देखकर गुजारा भत्ता एडजस्ट हो सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग कानूनी प्रा‌वधान है जिसके तहत प्रा‌वधान है  पक्षकारों द्वारा गुजारा भत्ता का दावा किया जाता है। 

           इनमें सीआरपीसी की धारा-125, हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट व घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारा भत्ता का दावा किया जाता है। इन मामलों में पहले अलग-अलग फैसले हुए हैं। हाई कोर्ट ने कई बार फैसला दिया कि ये सब कार्यवाही अलग-अलग है ऐसे में मुआवजे की राशि दूसरे केस से एडजस्ट नहीं होगा। 

#4               वहीं अन्य फैसले में कहा गया कि एडजस्ट होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के विरोधाभास को खत्म करने के लिए हम निर्देश जारी करते हैं कि जब भी मामले में गुजारा भत्ता के लिए अर्जी दाखिल किया जाए तो पहले की कार्यवाही के बारे में खुलासा किया जाए और तब कोर्ट पिछले गुजारा भत्ता या आदेश को देखकर अपने फैसले में विचार करेगी और एडजस्ट कर सकती है।

                 गुजारा भत्ता में अपनी संपत्ति और देनदारी का खुलासा अनिवार्य और निपटारा छह महीने में हिंदू मैरिज एक्ट या फिर सीआरपीसी के तहत महिला पति से अंतरिम गुजारा भत्ता की मांग करती है। हम देखते हैं कि कई मामले सालों कोर्ट में रहते हैं। ऐसे में जरूरी है कि इन मामलों को स्ट्रीमलाइन किया जाए। कई बार महिला हाउस वाइफ होती है और कानूनी लड़ाई वह अपने रिश्तेदारों से उधार लेकर लड़ती है।

#5                       ऐसे में दोनों पार्टियों को अपनी संपत्ति और देनदारी का ब्यौरा कोर्ट में देना होगा। अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट में आवेदन के साथ-साथ दोनों पार्टियों को अपनी संपत्ति और देनदारी का ब्यौरा देना अनिवार्य होगा। पत्नी की गुजारा भत्ता की अर्जी पर जब पति जवाब देगा तो वह 

                        चार हफ्ते में जवाब देगा और हलफनामे में संपत्ति और देनदारी यानी खर्च का ब्यौरा देगा। कोर्ट उसे दो मौका देगी अगर इस दौरान पति जवाब नहीं देता तो उसका बचाव कोर्ट खत्म कर सकती है और आवेदक की अर्जी के मुताबिक फैसला देगी। सुनवाई के दौरान अगर वित्तीय स्थिति में पार्टियों के बदलाव हुए तो दोबारा हलफनामा देना होगा। 

#6                    कोर्ट में कोई भी गलत जानकारी देने पर गलत बयान के मामले में उक्त पार्टी पर मुकदमा चलेगा और साथ ही कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का केस अलग से चलेगा। अंतरिम गुजारा भत्ता का आदेश हलफनामा दायर करने के चार  से छह महीने के भीतर होगा।

#7

गुजारा भत्ता का आंकलन कैसे होगा...

इसके लिए कोई स्ट्रेटजैक फॉर्मूला नहीं

               सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके लिए कोई स्ट्रेटजैक फॉर्मूला नहीं है कि कैसे गुजारा भत्ता तय होगा। ये पार्टियों के स्टेटस पर निर्भर है साथ ही पत्नी की जरूरत, बच्चों की पढ़ाई, पत्नी प्रोफेशनल तरीके से पढ़ी है या नहीं, उसकी आमदनी क्या है, क्या उसकी आमदनी से जीवन निर्वाह हो सकता है, क्या शादी से पहले से नौकरी थी, क्या शादी के दौरान नौकरी में थी, क्या नॉन वर्किंग है इन तमाम बिंदुओं को देखना होगा।

  #1                कई जजमेंट है जिसमें कहा गया है कि पति की हैसियत के हिसाब से गुजारा भत्ता तय होगा और उसके खुद के परिवार का उस पर कितनी जिम्मेदारी है ये भी देखना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में केयरफुल बैलेंस की जरूरत है। पति की वित्तीय स्थिति, पत्नी का ससुराल में स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग क्या था इसे देखना होगा। 

  #8                  बच्चों की पढ़ाई उसके खर्चे, दोनों पक्षकारों की नौकरी और उम्र को भी देखना होगा। कई फैसले में कहा गया हैकि पत्नी की नौकरी गुजारा भत्ते देने के मामले में बार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट उक्त तमाम तथ्यों और परिस्थितियों को देखकर आदेश पारित करेगा।आदेश का पालन नहीं करने पर होगा      कंटेप्टऑफकोर्ट

                 सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि जिस तारीख को गुजारा भत्ता के लिए आवेदन दाखिल किया जाएगा उसी तारीख के हिसाब से गुजारा भत्ता तय होगा। अदालत ने कहा कि मेंटेनेंस और एलमनी का जो भी आदेश होगा उसे पालन कराना सुनिश्चित करना होगा और आदेश का पालन नहीं होने की स्थिति में आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कंटेप्ट ऑफ कोर्ट होगा।
क्या था मामला?
  #9             सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक मामले में निचली अदालत और बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया जिसमें पति को निर्देश दिया गया था कि वह पत्नी को 15 हजार रुपये प्रति महीने और बच्चे को 10 हजार रुपये प्रति महीने गुजारा भत्ता का भुगतान करे इस मामले में अंतरिम गुजारा भत्ता का मामला सात साल से पेंडिंग था। सुप्रीम कोर्ट में महिला के पति ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। 
सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले की सुनवाई के दौरान उक्त गाइडलाइंस जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एक सितंबर को गोपाल शंकर नारायणन और अनिता सोनॉय को कोर्ट सलाहकार बनाया गया था।
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#10

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#1

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#11

 

 


सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

प्रॉपर्टी को लेकर किया जाने वाला काेई भी एग्रीमेंट परिवार के सभी सदस्यों की सहमति से ही किया जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट /

 प्रॉपर्टी को लेकर किया जाने वाला काेई भी एग्रीमेंट परिवार के सभी सदस्यों की सहमति से ही किया जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट /

#1

बेटों को मिली प्राॅपर्टी ज्वाइंट फैमिली प्रॉपर्टी, छोटे सदस्यों की सहमति के बिना एग्रीमेंट मान्य नहीं 

                        55 साल पुराना भूमि विवाद निपटाते हुए सुप्रीम काेर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है। काेर्ट ने कहा कि पिता से बेटों को मिली प्राॅपर्टी, उनकी निजी प्राॅपर्टी नहीं, बल्कि ज्वाइंट फैमिली प्रॉपर्टी होगी। घर के बड़े सदस्यों द्वारा अपनी संतान की सहमति के बिना इस प्राॅपर्टी काे लेकर किया गया एग्रीमेंट मान्य नहीं होगा। जस्टिस की बेंच ने डोडा मुनियप्पा बनाम मुनिस्वामी व अन्य केस में दायर याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।

  #2                      काेर्ट ने कहा कि ऐसी प्रॉपर्टी को लेकर किया जाने वाला काेई भी एग्रीमेंट परिवार के सभी सदस्यों की सहमति से ही किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि बेंगलुरू के चिकन्ना नामक व्यक्ति की मौत के बाद उसकी प्राॅपर्टी तीन बेटों पिलप्पा, वेंकटरमनप्पा और मुनिप्पा को मिली। तीनों ने 1950 में इसे बेच दिया। साथ ही शर्त रखी कि खरीदार अगर भविष्य में यह प्राॅपर्टी बेचेगा ताे उन तीनों को ही बेचनी हाेगी।

                    खरीदार ने इस शर्त का उल्लंघन करते हुए 1962 में इसे डोडामुनियप्पा को बेच दिया। इसके खिलाफ चिकन्ना के पौत्र मुनिस्वामी व अन्य 5 पौत्र कोर्ट पहुंचे। निचली अदालत ने इसे ज्वाइंट फैमिली प्राॅपर्टी नहीं मानते हुए याचिका खारिज कर दी। हालांकि, हाईकोर्ट ने ज्वाइंट फैमिली प्रॉपर्टी मानते हुए मुनिस्वामी के पक्ष में फैसला दिया। विराेध में डोडामुनियप्पा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

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#3

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#4

शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

भारत में तलाक की डिक्री कब और कैसे मिलती है


 How to Get Decree of Divorce
             in India

 भारत में तलाक की डिक्री कब और कैसे मिलती है

#1

                विवाह विच्छेद के लिए तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) प्राप्त करने के लिए विवाह के पश्चात न्यायालय में कब याचिका पेश की जाती है? क्या निर्धारित समय के पहले भी ऐसी याचिका पेश की जा सकती है ? इन्ही सब सवालो के जवाब मिलेंगे।
  

             हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 (Hindu Marriage Act 1976) के अनुसार विवाह की तिथि से 1 वर्ष के भीतर विवाह विच्छेद यानि की तलाक ये डाइवोर्स के लिए कोई याचिका प्रस्तुत नहीं की जा सकती है। पहले में यह अवधि 3 वर्ष की थी। परंतु 1976 में लाए गए संशोधन के अनुसार इस अवधि को 1 वर्ष कर दिया गया है।

    #2      क्या निर्धारित समय के पहले भी ऐसी याचिका तलाक (Decree of Divorce) के लिए पेश की जा सकती हैं ?
     यदि याची द्वारा असाधारण कष्ट भोगा जाता है,  तो अपवाद स्वरूप समय से पूर्व भी (Decree of Divorce) तलाक की याचिका दायर की जा सकती है। इसके लिए न्यायालय से आज्ञा लेना आवश्यक होगा। किंतु यदि न्यायालय की याचिका की सुनवाई में यह प्रतीत होता है, कि याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति किसी मिथ्या व्यापदेशन अथवा मामले को छिपाकर प्राप्त की थी। 

  #1         तो उस दशा में न्यायालय यदि (Decree of Divorce) डाइवोर्स डिक्री पास करता है, तो वह शर्त लगा सकता है, कि डिक्री विवाह की तिथि से 1 वर्ष बीत जाने से पहले प्रभावशाली ना हो, अथवा न्यायालय याचिका को खारिज करता है। तो 1 वर्ष बीत जाने के पश्चात प्रस्तुत की जाने वाली तलाक की याचिका पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी। और 1 वर्ष के बाद दूसरी याचिका खारिज की गई याचिका के आधार पर ही अथवा सारभूत रूप से उन्हीं आधारों पर लाई जा सकेगी।

        #3          यहां यह भी प्रावधान है, कि विवाह ख़तम करने की किसी भी याचिका पर अपना कोई निर्णय देने से पूर्व न्यायालय याची एवं   प्रत्युत्तरदाता के बच्चों के हितों को दृष्टिगत अथवा ध्यान में रखते हुए 1 वर्ष पूर्ण होने से पूर्व दोनों के मेल मिलाप की संभावनाओं पर भी विचार करेगा।
                         मेघनाथ बनाम सुशीला के केस में माननीय न्यायाधीश ने यह कहा, कि धारा 14 इस प्रकार के नियंत्रण को इस कारण प्रदान करती है, जिससे विवाह के पक्षकार जल्दबाजी में बिना आगा पीछा, सोचे समझे, विवाह विच्छेद के लिए विधिक कार्यवाहिओं के लिए अग्रसर ना हो विवाह  विच्छेद के आधार जनहित की दृष्टि से बनाए गए है। विवाह सामाजिक जीवन का स्तंभ है। किसी भी देश की विधियां तथा विधान उसके नागरिकों के लिए इतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितना कि विवाह संबंधी विषयों को सन्नियमित करने वाली विधियां अथवा कानून है।।

#4

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  #5

पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद – 

(Decree of Divorce by Mutual Consent)
         विवाह विधि अधिनियम 1976 की धारा 13 (ख) 

                       ( Marriage Laws (Amendment) Act, 1976) के अनुसार इस अधिनियम के उपबंधुओं के अंतर्गत या दोनों पक्ष कार पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री  द्वारा विवाह के विघटन के लिए याचिका जिला न्यायालय में चाहे जिस विधि से हुआ हो , विवाह विधि संशोधन अधिनियम 1976 (Marriage Law Act 1976) के प्रारंभ के पूर्व अनुष्ठापित किया गया हो, चाहे उसके पश्चात इस आधार पर पेश कर सकेंगे। कि वे 1 वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं, और वे एक साथ नहीं रह सकते हैं , तथा वे इस शर्त के लिए पारस्पर सहमत हो गए हैं।,कि विवाह विघटित कर देना चाहिए।

  #6       विवाह विधि अधिनियम 1976 की धारा 11 (ख) ( Marriage Laws (Amendment) Act, 1976) उपधारा एक में निर्दिष्ट याचिका के उपस्थिति तारीख से 6 माह के पश्चात और 18 माह के भीतर दोनों पक्षकारों द्वारा किए गए प्रस्ताव पर यदि इसी बीच याचिका वापस नहीं ले ली गई हो, तो न्यायालय पक्षकारों को सुनने के पश्चात और ऐसी जांच जैसी वह ठीक समझे। यह घोषणा करने के पश्चात और अपना यह समाधान कर लेने के पश्चात की विवाह अनुष्ठापित हुआ है, और याचिका में कहे गए कथन ठीक है , यह घोषणा करने वाले डिक्री पारित करेगा, कि विवाह डिक्री की तारीख में विघटित हो जाएगा।

#1           संशोधन अधिनियम 1976 के अंतर्गत धारा 13 (क) ( Marriage Laws (Amendment) Act, 1976) द्वारा जो परिवर्तन किया गया है, वह इस प्रकार है- ” यदि विवाह विच्छेद की याचिका दायर की गई है, तो धारा 13 के अधीन कई धर्म परिवर्तन संसार पर त्याग तथा प्रकल्पित मृत्यु के आधारों को छोड़कर यदि न्यायालय याचिका के प्रकथन से संतुष्ट हैं, तो विवाह विच्छेद के स्थान पर न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित कर सकता है। 

#7             विवाह विच्छेद प्राप्त व्यक्ति कब पुनर्विवाह कर सकते               हैं?
          विवाह विच्छेद की डिक्री पारित होने के तुरंत बाद कोई भी पक्षकार तुरंत ही पुनर्विवाह करने का अधिकारी नहीं होता। अतः इस प्रकार विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाने पर विवाह के पक्षकार पुनर्विवाह कर सकते हैं,। यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी हो गई है-
1- जबकि विवाह विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह भंग कर दिया गया है, और उसे डिग्री के विरुद्ध अपील करने का कोई अधिकार है, अंतिम अपीलीय न्यायालय द्वारा पहले विवाह विच्छेद की डिक्री देने पर उसके डिग्री के विरुद्ध अपील करने का अधिकारी नहीं रहता है
2– यदि विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध अपील करने का अधिकारी है, तो अपील प्रस्तुत करने की अवधि बिना अपील प्रस्तुत किए समाप्त हो गई है।
3- यदि अपील की गई है, तो वह खारिज हो गई है।

  #8           इस प्रकार विवाह विच्छेद की याचिका की सुनवाई अंतिम रूप से समाप्त हो जाने पर ही पक्षकारों को पुनर्विवाह करने का अधिकार है।
व्यख्या- विवाह विच्छेद की डिक्री (Decree of Divorce) प्राप्त होने के पश्चात पक्षकारों को तुरंत ही पुनर्विवाह करने का अधिकार नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 15 विवाह विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों के पुनः विवाह के संबंध में उपबंधित है, 

        यह धारा कहती है- कि जबकि विवाह विच्छेद की डिक्री (Decree of Divorce) द्वारा विवाह विघटित कर दिया हो, और या तो डिक्री के विरुद्ध अपील करने के समय कोई अपील उपस्थित हुए बिना अवधान हो गया हो, या अपील की गई हो, किंतु खारिज कर दी गई हो, पर विवाह के किसी पक्षकार के लिए पुनर्विवाह करना विधि पूर्ण ना होगा।

#9             परंतु उन्हीं पक्षकारों के लिए पुनर्विवाह करना तब तक विधि पूर्ण होगा, जब तक कि ऐसे विवाह की तारीख तक प्रथम बार के न्यायालय में हुई, डिक्री से कम से कम 1 वर्ष बीत ना गया हो,
     1976 के संशोधन से धारा 15 के परंतु को अब समाप्त कर दिया गया है। जिसमें यह शर्त थी, कि पक्षकारों के लिए पुनर्विवाह करना, तब तक विधि पूर्ण ना होगा ।  जब तक कि ऐसे विवाह की तारीख तक प्रथम बार में न्यायालय में हुई डिक्री से कम से कम 1 वर्ष ना बीत गया हो 

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#10

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#1

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

प्रतिकूल कब्जे के जरिये सरकार को नागरिको की जमीन पर पूर्ण स्वामित्व की अनुमति नहीं दी जा सकती

 Supreme Court Judgment on Adverse Possession Against Govt
प्रतिकूल कब्जे के जरिये सरकार को नागरिको की जमीन पर पूर्ण स्वामित्व की अनुमति नहीं दी जा सकती

  #1               उच्चतम न्यायालय (SC) ने एक बार फिर (एडवर्स पजेशन) Adverse Possession  जिसे प्रतिकूल कब्जा कहा जाता है, के ऊपर फैसला सुनते हुए हिमाचल प्रदेश की एक 80-वर्षीया निरक्षर विधवा को राहत प्रदान की है, यह फैसला राज्य सरकार के खिलाफ थी जिसकी जमीन राज्य सरकार ने 1967-68 में सड़क निर्माण के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाये बिना जबरन ले ली थी।


 

  #2                    न्यायमूर्ति की पीठ ने व्यवस्था दी कि सरकार नागरिकों से हड़पी जमीन पर पूर्ण स्वामित्व के लिए प्रतिकूल कब्जे (एडवर्स पजेशन, Adverse Possession) के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया अपनाये बगैर निजी सम्पत्ति से किसी को जबरन बेदखल करना उसके मानवाधिकार तथा संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत उसके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।

#3

क्या था ये मामला
          अपीलकर्ता विद्या देवी की जमीन सरकार ने 1967-68 में सड़क निर्माण के लिए जबरन ले ली थी। चूंकि वह निरक्षर थी, इसलिए उसे कानूनी उपायों की जानकारी नहीं थी। वर्ष 2004 में कुछ अन्य लोगों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिनकी जमीनें राज्य सरकार ने इसी तरीके से हड़प ली थी।

  # 4                   तीन वर्ष बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं की जमीनें भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के तहत अधिग्रहीत करे और संबंधित लोगों को कानून के प्रावधानों के अनुरूप मुआवजा दे। इस आदेश की जानकरी मिलने के बाद, अपीलकर्ता (विद्या देवी) ने भी 2010 में हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के तहत मुआवजे का दावा किया था। राज्य सरकार ने इस याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि 42 वर्षों तक ‘प्रतिकूल कब्जे’ (Adverse Possession) के जरिये उसने पूर्ण स्वामित्व हासिल कर लिया है।

#5

राज्य सरकार की दलील
               राज्य सरकार ने यह भी दलील दी थी कि उक्त जमीन पर सड़क बनायी जा चुकी है और अपीलकर्ता को दीवानी मुकदमा का रास्ता अपनाना चाहिए था। वर्ष 2013 में हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रिट याचिका खारिज कर दी कि इस मामले में तथ्य संबंधी विवादित सवाल मौजूद हैं, हालांकि उसने अपीलकर्ता को दीवानी मुकदमा दायर करने की अनुमति दी थी। इस आदेश से असंतुष्ट होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बगैर प्रक्रिया अपनाये सम्पत्ति से जबरन बेदखल नहीं किया जा सकता

#6             सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 300ए का हवाला देते हुए कहा :
               “किसी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया अपनाये बगैर उसकी निजी सम्पत्ति से जबरन बेदखल करना मानवाधिकार का तथा संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत प्रदत्त संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन है।” कोर्ट ने कहा : “कानून के शासन से संचालित लोकतांत्रिक राजतंत्र में सरकार कानून की मंजूरी के बिना अपने ही नागरिक को उसकी सम्पत्ति से वंचित नहीं कर सकती।”

#7                “कानून के शासन द्वारा संचालित कल्याणकारी सरकार होने के नाते सरकार खुद को संविधान के दायरे से बाहर नहीं ले जा सकती।”
नागरिकों की सम्पत्ति कब्जाने के लिए प्रतिकूल कब्जे की दलील नहीं दी जा सकती सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से पेश ‘प्रतिकूल कब्जे’ की दलील पर आश्चर्य जताया। इसने कहा कि कोई भी कल्याणकारी सरकार अपने नागरिक की सम्पत्ति कब्जाने के लिए ‘प्रतिकूल कब्जे’ के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं कर सकती। “हमें राज्य सरकार द्वारा हाईकोर्ट में पेश दलील को लेकर आश्चर्य हो रहा है कि चूंकि उस जमीन पर उसका 42 वर्ष से लगातार कब्जा है, इसलिए यह ‘प्रतिकूल’ कब्जे के समान माना जायेगा।
                   कल्याणकारी सरकार होने के नाते राज्य को ‘प्रतिकूल कब्जे’ (Adverse Possession) की दलील की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसके तहत अनधिकृत व्यक्ति (नुकसान पहुंचाने या किसी अपराध के दोषी व्यक्ति) को भी किसी सम्पत्ति पर 12 साल से अधिक कब्जा जमाये बैठे रहने के आधार पर कानूनी स्वामित्व दे दिया जाता है। सरकार को प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत का इस्तेमाल करके जमीन पर पूर्ण स्वामित्व हासिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जैसा कि इस मामले में किया गया है।”
#9
              कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा मामले में की गयी देरी की दलील भी खारिज कर दी।
राज्य सरकार की यह भी दलील दरकिनार कर दी गयी कि अधिग्रहण के लिए मौखिक सहमति दी गयी थी। “एक ऐसा मामला, जिसमें न्याय की मांग इतनी अकाट्य है, तो एक संवैधानिक अदालत न्याय को बढ़ावा देने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करेगी, न कि न्याय को हराने के लिए।” कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने किसी कानूनी मंजूरी के बिना एक विधवा औरत को उसकी सम्पत्ति से करीब आधी सदी वंचित रखा। इसलिए शीर्ष अदालत की नज़र में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए यह उचित मामला है।

  #10                       खंडपीठ के लिए न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने फैसला लिखते हुए कहा, “हम संविधान के अनुच्छेद 136 और 142 के तहत प्रदत्त असाधारण अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं और राज्य सरकार को यह निर्देश देते हैं कि वह अपीलकर्ता को मुआवजे का भुगतान करे।” इस मामले को ‘डीम्ड एक्वीजिशन’ की तरह मानते हुए राज्य सरकार को अपीलकर्ता को उतना ही मुआवजा देने को निर्देश दिया गया, जितना मुआवजा बगल की उस जमीन के लिए दिया गया है, जिसका उल्लेख इस मामले में हुआ है। कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए कि उल्लेखित मामले में दावाकर्ताओं ने मुआवजे में बढ़ोतरी के लिए हाईकोर्ट में अपील दायर की है, मौजूदा अपीलकर्ता को आठ सप्ताह के भीतर अपील दायर करने की अनुमति दे दी। इन सबके अलावा, राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया गया कि वह अपीलकर्ता (विद्या देवी) को कानूनी खर्चे के तौर पर एक लाख रुपये का भुगतान करे।

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#11

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1}गिफ्ट(Gift) की गई संपत्ति के स्वामित्व के लिए स्टाम्प ड्यूटी के भुगतान का महत्व?

2}Stay Order का क्या मतलब होता है? प्रॉपर्टी पर स्थगन आदेश क्या होता हैं? प्रॉपर्टी के निर्माण पर स्थगन आदेश कैसे होता है?

3}क्यों जरूरी है नॉमिनी? जानें इसे बनाने के नियम और अधिकार

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4}Deaf and Dumb पीड़िता के बयान कैसे दर्ज होना चाहिए। Bombay High Court

5}क्या दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार है?

6}हिंदू उत्तराध‌िकार अध‌िनियम से पहले और बाद में हिंदू का वसीयत करने का अध‌िकार

7}निःशुल्क कानूनी सहायता-

8}संपत्ति का Gift "उपहार" क्या होता है? एक वैध Gift Deed के लिए क्या आवश्यक होता है?


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