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*अरावली रेंज* राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली राज्यों में फैली हुई है यह भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है, एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है उच्चतम बिंदु- गुरु शिखर, माउंट आबू, राजस्थान.
*विंध्य रेंज* मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार में फैली हुई है इसमें पहाड़ी मैदान, पठार और असमान पर्वत श्रंखलाएँ हैं नर्मदा नदी का स्रोत यहां पर है/
*पश्चिमी घाट* गुजरात से तमिलनाडु तक भारत के पश्चिमी तट पर फैली है यह श्रंखला अपने समृद्ध वनस्पतियों और जीवों, राष्ट्रीय उद्यानों और जीवमंडल भंडार (biosphere reserve) के लिए प्रसिद्ध है सह्याद्री रेंज और अन्नामलाई पहाड़ियों जैसे अन्य पहाड़ी पर्वतमालाओं इसमें शामिल हैं यह दुनिया के दस जैवविविधता (Biodiversity) के आकर्षण केंद्रों में से एक है
*पूर्वी घाट* भारत के पूर्वी तट पर फैले हुए हैं यह पश्चिमी घाट के विपरीत एक अनियमित श्रंखला है शेवरॉय पहाड़ियों और जावड़ी पहाड़ियों जैसी कई अन्य पहाड़ी पर्वतमालाएं इसमें शामिल हैं
*पट्काई रेंज* यह पूर्वोत्तर भारत की एक बड़ी पहाड़ी श्रृंखला है और इसमें पटकाई बाम, लुशाई और गारो-खासी-जंतिया पर्वतमालाएँ शामिल हैंइस क्षेत्र में बहुत अधिक बारिश होती है और मौसिनराम यहाँ स्थित है जहां दुनिया में सबसे वर्षा होती है
पिता की संपत्ति पर बेटी कब कर सकती है दावा, कब नहीं ? जानें, क्या कहता है हिंदू उत्तराधिकार कानून
इसमें दो राय नहीं कि पिता, भाई, पति अथवा अन्य किसी पर भी वित्तीय निर्भरता से महिलाओं की जिंदगी कठिन हो जाती है। यही वजह है कि हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया। बावजूद इसके, क्या पिता अपनी बेटी को पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर सकता है? आइए देखें क्या कहता है कानून...
1)पैतृक संपत्ति हो तो हिंदू लॉ में संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटा गया है- पैतृक और स्वअर्जित। पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तियां आती हैं जिनका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो। ऐसी संपत्तियों पर संतानों का, वह चाहे बेटा हो या बेटी, जन्मसिद्ध अधिकार होता है। 2005 से पहले ऐसी संपत्तियों पर सिर्फ बेटों को अधिकार होता था। लेकिन, संशोधन के बाद पिता ऐसी संपत्तियों का बंटवारा मनमर्जी से नहीं कर सकता। यानी, वह बेटी को हिस्सा देने से इनकार नहीं कर सकता। कानून बेटी के जन्म लेते ही, उसका पैतृक संपत्ति पर अधिकार हो जाता है।
2).पिता की स्वअर्जित संपत्ति स्वअर्जित संपत्ति के मामले में बेटी का पक्ष कमजोर होता है। अगर पिता ने अपने पैसे से जमीन खरीदी है, मकान बनवाया है या खरीदा है तो वह जिसे चाहे यह संपत्ति दे सकता है। स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी देना पिता का कानूनी अधिकार है। यानी, अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है।
3. अगर वसीयत लिखे बिना पिता की मौत हो जाती है अगर वसीयत लिखने से पहले पिता की मौत हो जाती है तो सभी कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी संपत्ति पर समान अधिकार होगा। हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष उत्तराधिकारियों का चार श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है और पिता की संपत्ति पर पहला हक पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों का होता है। इनमें विधवा, बेटियां और बेटों के साथ-साथ अन्य लोग आते हैं। हरेक उत्तराधिकारी का संपत्ति पर समान अधिकार होता है। इसका मतलब है कि बेटी के रूप में आपको अपने पिता की संपत्ति पर पूरा हक है।
4.अगर बेटी विवाहित हो 2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थीं, हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी नहीं। हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते/होती हैं जिनका अपने से पहले की चार पीढ़ियों की अविभाजित संपत्तियों पर हक होता है। हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का भी हिस्सा नहीं माना जाता है। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है। यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।
5. अगर 2005 से पहले बेटी पैदा हुई हो, लेकिन पिता की मृत्यु हो गई हो हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुआ संशोधन 9 सितंबर, 2005 से लागू हुआ। कानून कहता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म इस तारीख से पहले हुआ है या बाद में, उसका पिता की संपत्ति में अपने भाई के बराबर ही हिस्सा होगा। वह संपत्ति चाहे पैतृक हो या फिर पिता की स्वअर्जित। दूसरी तरफ, बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है जब पिता 9 सितंबर, 2005 को जिंदा रहे हों। अगर पिता की मृत्यु इस तारीख से पहले हो गई हो तो बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा और पिता की स्वअर्जित संपत्ति का बंटवारा उनकी इच्छा के अनुरूप ही होगा।
जानिए अपनी संपत्ति को अवैध कब्जे से वापस प्राप्त करने के उपाय
आम तौर पर अवैध कब्जे दो तरीकों से किया जा सकता है जब कुछ लोग गलत दस्तावेजों को दिखाकर और ज़बरदस्ती (बल का प्रयोग) करके किसी संपत्ति पर कब्जा कर लेते हैं। जब वो लोग इस कार्य को करना शुरू करते हैं, तब से यह कार्य गैरकानूनी हो जाता है। ऐसा अवैध कब्जा तब भी हो सकता है, जब कोई किरायेदार आपके परिसर को खाली करने से इनकार करता है। किरायेदारों द्वारा उपयोग की जाने वाली सबसे आम बचाव प्रतिकूल कब्जे का होता है। यह सलाह दी जाती है, कि अपने आवास को किराए पर देने से पहले एक उचित किराया समझौता करें और साथ ही ऐसी स्थितियों में शामिल होने से बचने के लिए मजबूत उपाय करें। ये स्थितियां ज्यादातर तब उत्पन्न होती हैं, जब गैरकानूनी रूप से कब्जे वाले संपत्तियों को लापरवाह, किरायेदारों द्वारा अनिर्दिष्ट स्थिति के साथ असुरक्षित छोड़ दिया जाता है, या ऐसी संपत्ति जो बर्षों से पड़ी हुई हैं, जो सीधे ऐसे कुख्यात लोगों के लिए एक आसान लक्ष्य बन जाते हैं।
प्रतिकूल कब्ज़ा तब होता है, जब संपत्ति का सही मालिक अपनी संपत्ति से एक वैधानिक समय अवधि (भारतीय कानून के तहत 12 वर्ष) के भीतर एक अतिचार / कब्जा से छुटकारा पाने के लिए अपनी ओर से निष्क्रियता के परिणामस्वरूप अपने स्वामित्व के अधिकारों से वंचित हो जाता है। अतिचार / कब्जे को हटाने के लिए वैधानिक सीमा की अवधि पूरी होने के बाद, सही मालिक को अपनी संपत्ति पर कब्जा वापस पाने के लिए किसी भी कानूनी कार्यवाही शुरू करने से प्रतिबंधित किया जाता है, और इस प्रकार, विपत्तिकर्ता को प्रतिकूल संपत्ति द्वारा उस संपत्ति का शीर्षक हासिल करने की अनुमति देता है। अप्रवासी भारतीयों के पास अवैध कब्जे, अतिचार के मामले सबसे आम हो सकते हैं। इसके कारण हैं- वे इन संपत्तियों में नहीं रहते हैं, हर समय संपत्ति पर कब्जा नहीं करते हैं। एन. आर. आई. लोग बार - बार संपत्ति को देखने नहीं आ सकते हैं, इसलिए वे दोस्तों, परिचितों और रिश्तेदारों को संपत्ति का कब्जा / नियंत्रण देना समाप्त कर देते हैं। इसके अलावा, समय के साथ कई रहने वालों, रिश्तेदारों, दोस्तों को लगता है कि वे खुद की जगह हैं, क्योंकि संपत्ति की निगरानी और पर्यवेक्षण करने वाला कोई नहीं है।
किरायेदारों / देखभालकर्ताओं के साथ मौखिक और अपंजीकृत समझौते अवैध कब्जे के परिणामस्वरूप काफी सामान्य हैं। ऐसी संपत्ति जिसमें किरायेदार या रखरखाव करने वाले नहीं होते हैं, और संपत्ति का मालिक भी बहुत कम ही संपत्ति को देखने आ पाता है, तो ऐसी स्तिथि में उस संपत्ति पर भू - माफिया लोग अतिचार और अवैध रूप से कब्जा बहुत आसानी से कर सकते हैं।
कब्जे का वास्तविक अर्थ कब्जे का अर्थ है, किसी वस्तु पर वास्तविक नियंत्रण होना, चाहे आप इसके मालिक हों या न हों। हालांकि, यहां तक कि वस्तु के कब्जे वाले व्यक्ति को तीसरे पक्ष के खिलाफ कुछ कानूनी संरक्षण भी प्राप्त होता है, भले ही वह उस संपत्ति का मालिक न हो। यह संरक्षण किसी भी गैरकानूनी कार्य करने वाले व्यक्ति के कब्जे में हिंसा के खिलाफ दिया जाता है। यदि किसी संपत्ति का मालिक एन. आर. आई. होता है, जो कि बर्षों तक उस संपत्ति को देखने भी नहीं आता है, और विदेश से ही उस संपत्ति पर अपने मालिकाना अधिकारों को प्राप्त करता रहता है, तो ऐसी संपत्ति पर किसी व्यक्ति को फर्जी कब्ज़ा करने और उस संपत्ति के जाली दस्तावेजों को बनवाने में अधिक समय नहीं लगता है। इसके अलावा जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है, ऐसी स्तिथि में उस फर्जी व्यक्ति को संपत्ति से निष्कासित करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
आप अपनी संपत्ति को अवैध कब्जे से कैसे बचा सकते हैं? कानूनी रूप से अपनी संपत्ति को नियंत्रित करने और कब्जे को बहाल करने का सबसे अच्छा तरीका न्यायालय में जाकर न्याय की मांग करना है। नागरिक न्यायालय के उपाय आसानी से उपलब्ध हैं, जहां न्यायालय में आवश्यक व्यक्तिगत उपस्थिति को सक्षम और चुने हुए वकीलों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। कानूनी कब्जे कानून के तहत संपत्ति के कब्जे को बहाल करने और यहां तक कि शांतिपूर्ण कब्जे के साथ किसी भी तीसरे पक्ष के अतिचार या अवैध हस्तक्षेप से बचाने के लिए उपलब्ध होते हैं।
रोकथाम इलाज से बेहतर होती है आपको सच्चे केयरटेकर को अपनी संपत्ति देनी चाहिए और क़ानूनी तरीके से किरायेदारी के एग्रीमेंट को तैयार करना चाहिए। सरल शब्दों में, आपको हमेशा संपत्ति के कब्जे देने वाले व्यक्ति की स्थिति और कर्तव्य को परिभाषित करना चाहिए। आपको किसी भी व्यक्ति को अपने घर पर लंबे समय तक कब्जा नहीं रखने देना चाहिए। आपको अवैध रूप से कब्ज़ा की हुई संपत्ति से बचने के लिए उसके केयरटेकर को बदलते रहना चाहिए। वास्तविक कानूनी उपाय विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा - 5 के तहत, कोई व्यक्ति जो अपनी संपत्ति के शीर्षक से वंचित है, उसे शीर्षक से कब्जा मिल सकता है। विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा - 6 के तहत, एक व्यक्ति जो पूर्व में अपनी संपत्ति पर कब्जा करके और बाद में अवैध फैलाव साबित करके अपना अधिकार प्राप्त कर सकता है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा - 145 उस प्रक्रिया को रद्द कर देती है, जहां जमीन को लेकर विवाद होने की संभावना है। एक व्यक्ति जिसे अपनी संपत्ति पर अतिचार या अवैध फैलाव का डर होता है, वह पुलिस के पास अपनी लिखित शिकायत दर्ज करा सकता है। जिले के पुलिस अधीक्षक (एस. पी.) को एक लिखित शिकायत भेजी जा सकती है, जहां संपत्ति पंजीकृत डाक के माध्यम से या संबंधित पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में स्थित है।
यदि पुलिस अधीक्षक शिकायत को स्वीकार करने में विफल रहता है, तो संबंधित न्यायालय में एक व्यक्तिगत शिकायत एक वकील के माध्यम से दायर की जा सकती है, और मामला तब एक विशेष पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से पालन किया जा सकता है, जब मालिक न्यायालय में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर सकता।
एक सक्षम वकील ऐसे मामलों में क्या कर सकता है? एक वकील अदालत में पूर्ण समर्थन, क्षमता और दक्षता प्रदान कर सकता है, और साथ ही ऐसे सभी मामलों का सामना करने के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व में स्पष्टता प्रदान कर सकता है। देश भर में ऐसे समर्पित और सक्षम वकीलों की एक बड़ी संख्या एन. आर. आई. के मामले में भी ऐसे मामलों को संभालने के लिए उपलब्ध हैं, जो शारीरिक रूप से न्यायालय में उपस्थित होने के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 और 12 के तहत हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद संपत्ति विभाजित की जाएगी
हिंदू कानून के तहत हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 और 9 हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद संपत्ति के वितरण को नियंत्रित करती है। एक हिंदू पुरुष बिना वसीयत मरने पर संपत्ति कक्षा 1 के उत्तराधिकारी को जाती है जो अन्य सभी उत्तराधिकारियों के अपवाद के बाद संपत्ति ले लेता है। और यदि कक्षा 1 नहीं तो कक्षा 2 वारिस को जाती है। उदाहरण के लिए, यदि पिता अपनी पत्नी और चार बेटों के पीछे छोड़कर मर जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी संपत्ति के बराबर हिस्से का वारिस होगा, यानी प्रत्येक को पिता की संपत्ति का पाँचवां हिस्सा मिलेगा।
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धारा-8. पुरुष की दशा में उत्तराधिकार के साधारण नियम - निर्वसीयत मरने वाले हिन्दू पुरुष की सम्पत्ति इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार निम्नलिखित को न्यागत होगी :- (क) प्रथमतः उन वारिसों को, जो अनुसूची के वर्ग 1 में विनिर्दिष्ट संबंधी हैं; (ख) द्वितीयतः, यदि वर्ग 1 में वारिस न हो तो उन वारिसों को जो अनुसूची के वर्ग 2 में विनिर्दिष्ट संबंधी हैं: (ग) तृतीयतः, यदि दोनों वर्गों में किसी में का कोई वारिस न हो तो मृतक के गोत्रजों को; तथा (घ) अन्ततः, यदि कोई गोत्रज न हो तो मृतक के बन्धुओं को ।
धारा-9. अनुसूची में के वारिसों के बीच उत्तराधिकार का क्रम -- अनुसूची में विनिर्दिष्ट वारिसों में के वर्ग 1 में के वारिस एक साथ और अन्य सब वारिसों का अपवर्जन करते हुए अंशभागी होंगे; वर्ग 2 में की पहली प्रविष्टि में के वारिसों को दूसरी प्रविष्टि में के वारिसों की अपेक्षा अधिमान प्राप्त होगा; दूसरी प्रविष्टि में के वारिसों को तीसरी प्रविष्टि में के वारिसों की अपेक्षा अधिमान प्राप्त होगा और इसी प्रकार आगे क्रम से अधिमान प्राप्त होगा।
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धारा-10. अनुसूची के वर्ग 1 में के वारिसों में सम्पत्ति का वितरण -- निर्वसीयत की संपत्ति अनुसूची के वर्ग 1 में के वारिसों में निम्नलिखित नियमों के अनुसार विभाजित की जाएगी : नियम 1-- निर्वसीयत की विधवा को या यदि एक से अधिक विधवाएं हों तो सब विधवाओं को मिलाकर एक अंश मिलेगा। नियम 2 -- निर्वसीयत के उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों और माता हर एक को एक-एक अंश मिलेगा। नियम 3 -- निर्वसीयत के हर एक पूर्वमृत पुत्र की या हर एक पूर्वमृत पुत्री की शाखा में के सब वारिसों को मिलाकर एक अंश मिलेगा।
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नियम 4 -- नियम 3 में निर्दिष्ट अंश का वितरण : (i) पूर्वमृत पुत्र की शाखा में के वारिसों के बीच ऐसे किया जाएगा कि उसकी अपनी विधवा को या सब विधवाओं को मिलाकर और उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों को बराबर भाग प्राप्त हों, और उसके पूर्वमृत पुत्रों की शाखा को वही भाग प्राप्त हो; (i) पूर्वमृत पुत्री की शाखा में के वारिसों के बीच ऐसे किया जाएगा कि उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों को बराबर भाग प्राप्त हों ।धारा-11. अनुसूची के वर्ग 2 में के वारिसों में सम्पत्ति का वितरण -- अनुसूची के वर्ग 2 में किसी एक प्रविष्टि में विनिर्दिष्ट वारिसों के बीच निर्वसीयत की सम्पत्ति ऐसे विभाजित की जाएगी कि उन्हें बराबर अंश मिले । @5
धारा-12. गोत्रजों और बन्धुओं में उत्तराधिकार का क्रम -- गोत्रजों या बंधुओं में, यथास्थिति, उत्तराधिकार का क्रम यहां नीचे दिए हुए अधिमान के नियमों के अनुसार अवधारित किया जाएगा : नियम 1-- दो वारिसों में से उसे अधिमान प्राप्त होगा जिसकी ऊपरली ओर की डिग्रियांUpward degrees अपेक्षातर कम हों या हों ही नहीं । नियम 2 -- जहां कि ऊपरली ओर की डिग्रियों की संख्या एक समान हों या हों ही नहीं उस वारिस को अधिमान प्राप्त होगा, जिसकी निचली ओर की डिग्रियां Lower degreesअपेक्षातर कम हों या हों ही नहीं । नियम 3 -- जहां कि नियम 1 या नियम 2 के अधीन कोई सा भी वारिस दूसरे से अधिमान का हकदार न हो वहां दोनों साथ-साथ अंशभागी होंगे। एक वसीयत के तहत विरासत एक वसीयत या वसीयतनामा एक व्यक्ति की इच्छाओं को व्यक्त करते हुए एक कानूनी घोषणा है, जिसमें एक या अधिक व्यक्तियों के नाम शामिल हैं जो वसीयत कर्ता की संपत्ति का प्रबंधन कर रहे हैं और मृत्यु पर मृतक की संपत्ति का हस्तांतरण प्रदान करते हैं। यदि एक पिता (टेस्टेटर) वसीयत पीछे छोड़ देता है, तो संपत्ति भाइयों के बीच वितरित की जाएगी। एक निष्पादक को वसीयत कर्ता द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो कि अदालत द्वारा नियुक्त प्रशासक से अलग माना जाता है। @6
किरायेदारों और मकान मालिकों के लिए “वरदान” से कम नहीं रेंट कंट्रोल एक्ट, जानिए कैसे
घर को किराये पर देना रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत आता है। हर राज्य में कानून अलग-अलग हैं। आज हम इसी कानून की मुख्य बातें आपको बताने जा रहे हैं। साथ ही यह भी बताएंगे कि कैसे यह मकान मालिक और किरायेदारों के अधिकारों की रक्षा करता है। @1
जब कोई मकान मालिक अपना घर किराये पर देता है या कोई किराये के घर में रहता है तो एेसी गतिविधि रेंट कंट्रोल एक्ट के दायरे में आती है। हर राज्य का अपना रेंट कंट्रोल एक्ट है। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999 है तो दिल्ली में रेंट कंट्रोल एक्ट, 1958। वहीं चेन्नई में तमिलनाडु बिल्डिंग्स (लीज एंड रेंट कंट्रोल) एक्ट, 1960। रेंट कंट्रोल एक्ट का मुख्य काम यही है कि मकानमालिकों और किरायेदारों के बीच के विवादों को सुलझाया जा सके। रेंट कंट्रोल एक्ट की मुख्य बातें: , ”रेंट कंट्रोल एक्ट किरायेदारों को सुरक्षा देता है और मकान मालिकों को किरायेदारों को निकालने पर रोक लगाता है।” ये उन सभी विवादों को दूर करता है जिन पर मकान मालिक और किरायेदार के बीच लड़ाई होने की संभावना है। @2
रेंट कंट्रोल एक्ट की मुख्य बातें हैं: यह किराये पर दी गई प्रॉपर्टीज पर विभिन्न प्रकार के कानून लागू करता है, ताकि किरायेदार सुरक्षित किराये का घर हासिल कर सकें। यह निष्पक्ष और मानकीकृत किराये की रेंज तय करता है और ज्यादातर परिस्थितियों में किरायेदारों से ज्यादा किराया वसूला नहीं जा सकता। यह किरायेदारों को भेदभाव और उनके मकान मालिकों द्वारा अनुचित तरीके से बेदखल होने से बचाता है। किराए पर लिए जाने वाले घर के रखरखाव के संदर्भ में मकान मालिकों की जिम्मेदारियों और दायित्वों को उनके किरायेदारों के लिए परिभाषित करता है। जो किरायेदार किराया नहीं देता या प्रॉपर्टी का मिसयूज करता है, इसके लिए कानून मकान मालिक के अधिकारों को परिभाषित करता है।
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कैसे रेंट कंट्रोल एक्ट किरायेदारों के हितों की रक्षा करता है: एक्ट में एक बात साफ है कि बिना कारण के किरायेदारों को परिसर से निकाला नहीं जा सकता। किरायेदारों को बेदखल होने से रोकने के लिए कानून में कई प्रावधान हैं। इसी तरह कानून में यह भी लिखा है कि कोई मकान मालिक बिना किसी पर्याप्त कारण के किरायेदार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सेवा की आपूर्ति को काट या रोक नहीं सकता। ”कानून के तहत मकान मालिक लीव एंड लाइसेंस के एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड करने या परिसर किराये पर देने की जिम्मेदारी लेता है। अगर मकान मालिक किरायेदार के साथ एग्रीमेंट रजिस्टर नहीं कराता तो लीज के नियम व शर्तों को लेकर किरायेदार के विवाद सामने आएंगे, जब तक मकानमालिक अन्यथा साबित न हो जाए।
कानून ने मकान मालिकों के लिए अनिवार्य कर दिया है कि वे किरायेदारों द्वारा भुगतान की गई राशि की लिखित रसीद देंगे। अगर किरायेदार की मौत हो जाती है तो उसके परिवार के किसी सदस्य के नाम पर रसीद जारी होगी। अगर मकान मालिक लिखित रसीद जारी नहीं करता तो यह अपराध माना जाएगा।”
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रेंट कंट्रोल एक्ट कैसे मकान मालिकों के हितों की रक्षा करता है: कानून के हवाले से एक्सपर्ट्स ने बताया कि अगर मकान मालिक को अपने निजी काम के लिेए प्रॉपर्टी चाहिए तो वह पजेशन वापस ले सकता है। इसी तरह, कानून कहता है कि अगर किरायेदार के पास अन्य घर उपलब्ध है, तो मकान मालिक अपना अधिकार लागू कर प्रॉपर्टी को वापस हासिल कर सकता है। ”आमतौर पर किराये के घर पुराने और खराब हालत में होते हैं। इसलिए कानून इन इमारतों के फिर से बनाने के लिेए मकान मालिकों को उनके अधिकार इस्तेमाल करने की इजाजत देता है।” @5
यहां लागू नहीं होगा रेंट कंट्रोल अधिनियम: अगर परिसर बैंक, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग या केंद्र व राज्य सरकार द्वारा स्थापित कॉरपोरेशन के अलावा विदेशी मिशन, एमएनसी, इंटरनेशनल एजेंसी को दिया जाता है तो यह इस कानून के दायरे में नहीं आएगा। यह अधिनियम उन परिसरों में भी लागू नहीं होगा, जो प्राइवेट लिमिटेड और पब्लिक लिमिटेड कंपनियों दी जाती हैं, जिनके पास एक करोड़ या उससे अधिक की भुगतान पूंजी है। @6