किसी आरोपी का केस अगर पेंडिंग होता है तो
कोर्ट उसे CRPC के
Provision के तहत जमानत देती है -------
#1
सीआरपीसी केProvision के तहत जमानत देती है लेकिन इसके लिए कई बार जमानती लानेको कहा जाता है। जमानती का रोल अहम होता है, साथ ही उसकी जिम्मेदारियांभी अहम होती हैं। आइए जानें कि जमानती की जिम्मेदारी क्या हैं सीआरपीसी की धारा- 436, 437 और 438 के तहत जमानत दिए जाने का प्रावधान है। अदालत जब
किसी आरोपी को जमानत देती है, तो personal bond के अलावा जमानती पेश करने के लिए कहा जा
सकता है।
#2 कई बार बैंक लोन देते वक्त गारंटर मांगता है और गारंटर को गारंटीदेनी होती है
कि अगर लोन लेने वाले शख्स ने लोन नहीं चुकाया तो जिम्मेदारीउसकी होगी। लोन न चुकाने पर गारंटर को लोन की रकम चुकानी पड़ती है। क्रिमिनल केस में भी कुछ ऐसी ही स्थिति होती है। जब भी किसी आरोपी
को जमानत दी जाती है तो आरोपी को पर्सनल बॉन्ड भरने के साथ-साथ यह कहाजा सकता है कि वह इतनी रकम का जमानती पेश करे। ऐसे में आरोपी जमानती पेश करता है। जमानती आमतौर पर रिश्तेदार या फिर नजदीकी हो सकते हैं।जमानती जब अदालत में पेश होता है तो अदालत उससे पूछती है कि वह आरोपी का
जमानती क्यों बन रहा है? क्या वह उसकारिश्तेदार है या फिर दोस्त है?
अदालत जब जमानती से संतुष्टहो जाती है तो वह जमानती bond भरता है। जितनी रकम कावह जमानती है,
उतनी रकम का बॉन्ड भरना होता है और कोर्टमें दस्तावेज पेश करने होते हैं।
अदालत चाहे तो जमानती कापता Verify करा सकती है। बॉन्ड भरते वक्त
जमानती को यह अंडरटेकिंग देनी होती है कि वह आरोपी को सुनवाई के
दौरान पेश करेगा।
#3
धारा 438 -दण्ड प्रक्रिया संहिता(CRPC)
विवरण
(1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास के आरोप का कारण है कि उसे
अजमानतीय अपराध के आरोप पर
गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह इस धारा के अधीन उच्च न्यायालय
या सत्र न्यायालय को आवेदन कर सकता है
कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसे जमानत पर छोड़ दिया जाए और
न्यायालय अन्य सभी बातों के विचारों के
साथ-साथ निम्न बातों को ध्यान में रखकर, -
(1) आरोप की प्रकृति एवं गंभीरता,
(2) आवेदक का पूर्ववत जिसमें यह तथ्य भी सम्मिलित है कभी पूर्व में
किसी संज्ञेय अपराध के बाबत में न्यायालय
द्वारा दोषसिद्ध होने पर कारावास का दण्ड भोगा है या नहीं,
#4
(3) आवेदक के न्याय से भोगने की संभावना, और
(4) आवेदक को गिरफ्तार करके उसे चोट पहुंचाने या अपमानित करने
के उददेश्य से आरोप लगाया गया है,
या तो आवेदन को तत्काल अस्वीकार किया जावेगा या अग्रिम जमानत प्रदान करने का अंतरिम
आदेश दिया
जाएगा:
परन्तु यह कि जहाँ जैसी स्थिति हो उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय
ने इस उपधारा के अधीन कोई अंतरिम
आदेश नहीं दिया है या अग्रिम जमानत प्रदान करने के आवेदन को
अस्वीकार कर दिया है, तो पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी का यह विकल्प खुला रहैगा कि
ऐसे आवेदन के आशंकित आरोप के आधार
पर आवेदक को बिना वारंट गिरफ्तार कर ले।
#5
(1क) जहाँ न्यायालय उपधारा (1) के अधीन अंतरिम आदेश देता है तो
वह तत्काल सूचना कार्यान्वित करेगा,
जो सात दिनों से कम की सूचना की नहीं होगी जो ऐसे आदेश की एक प्रति के साथ जो लोक
अभियोजन और पुलिस अधीक्षक को भी देय
होगी जो न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम सुनवाई में लोक अभियोजक
को सुनने का युक्तियुक्त अवसर दिए जाने की दृष्टि की होगी।
(1ख) न्यायालय द्वारा अग्रिम द्वारा जमानत चाहने वाले आवेदन की अंतिम सुनवाई और अंतिम आदेश देने के समय आवेदक की उपस्थिति, यदि लोक अभियोजक द्वारा आवेदन करने पर, न्यायालय न्याय
हित में विचार करें कि ऐसी उपस्थिति
आवश्यक है तो बाध्य कर होगी।
(2) जब न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अधीन निदेश देता है
तब वह उस विशिष्ट मामले के तथ्यों
को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्तें, जो वह ठीक समझे, सम्मिलित
कर सकता है जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी है -
(1)
(1)
(1)
#6
(1) यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा,
(2) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को
प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते
प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा,
(3) यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना
भारत नहीं छोड़ेगा,
(4) ऐसी अन्य शर्ते जो धारा 437 की उपधारा (3) के अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती है मानो उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की
गई है।
(3) यदि तत्पश्चात ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने
के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह
या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह
ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे
जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, तथा यदि ऐसे
अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय कराता है कि उस
व्यक्ति के विरूद्ध प्रथम बार ही वारंट जारी
किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के निदेश
के अनुरूप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा।
#7
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