तलाक (Divorce) कैसे होता है | भारत में तलाक लेने के क्या हैं नियम, जानें पूरी प्रक्रिया
तलाक नये नियम | प्रक्रिया | आवेदन | कागजात नमूना
@1 हिन्दू धर्म में शादी अर्थात विवाह की मान्यता हिन्दू लॉ अधिनियम की धारा-5 के अन्तर्गत दी गयी है |
भारतीय हिन्दू लॉ अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक दिया जाता है और धारा 13 के अन्तर्गत तलाक की प्रक्रिया पूरी करायी जाती है| पति और पत्नी के इस आपसी रिश्ते को सामाजिक और कानूनी दोनों ही तरह से समाप्त करने के लिए तलाक के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकते है|
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तलाक के प्रकार (Types Of Divorce)
हमारे देश में तलाक लेने की दो प्रक्रियाएं है, पहला आपसी सहमति से और दूसरा किसी एक पक्ष द्वारा न्यायालय में अर्जी लगाकर अर्थात एकतरफा तलाक | आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया बहुत ही सरल होती है, क्योंकि इसमें दोनों पक्षों की सहमति होती है तथा इस प्रक्रिया में किसी तरह के वाद-विवाद, एक-दूसरे पर आरोप लगानें जैसी कोई बात नहीं होती हैं |जबकि दूसरी प्रक्रिया काफी जटिल होती है, क्योंकि इसमें किसी एक पक्ष द्वारा तलाक की मांग की जाती है अर्थात एक पक्ष तलाक लेना चाहता है, और एक पक्ष तलाक नहीं चाहता है | ऐसे में तलाक लेने के लिए न्यायालय के समक्ष कुछ ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करनें होते है, जिससे यह प्रमाणित हो जाये, कि ऐसी स्थितियों में तलाक लेना ही बेहतर है | कोर्ट द्वारा तलाक होनें पर सुनवाई के दौरान गुजारे भत्ते और बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी माता पिता में से किसी एक को ही दी जाती है, जो कि कोर्ट द्वारा निर्धारित किया जाता है |
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गुजारा भत्ता (Maintenance Allowance)
भारत में गुजारे भत्ते की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, इसके लिए दोनों पक्ष अर्थात पति और पत्नी आपसी सहमति से निर्णय ले सकते है, परन्तु इस सम्बन्ध में कोर्ट सबसे पहले पति की कमाई या आर्थिक स्थिति को देखते हुए गुजारे भत्ते का निर्णय करता है| पति की आर्थिक स्थिति जितनी अच्छी होगी, उसी के अनुसार पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा | यदि पत्नी एक सरकारी कर्मचारी है या किसी अच्छी जॉब में है, तो कोर्ट इस बात को ध्यान में रखते हुए गुजारे भत्ते की राशि निर्धारित करती है |
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बच्चों की देखभाल
तलाक के दौरान सबसे अहम् मुद्दा बच्चों का आता है, आखिर बच्चों की जिम्मेदारी किसके पास रहेगी | यदि माता और पिता अर्थात दोनों पक्ष बच्चों की देख-रेख करना चाहते हैं, तो न्यायालय द्वारा उन्हें जॉइंट कस्टडी या शेयर चाइल्ड कस्टडी दे दी जाती है | यदि उनमें से कोई एक जिम्मेदारी लेना चाहता है, तो सात वर्ष से कम आयु के बच्चे की कस्टडी कोर्ट द्वारा माँ को दी जाती है |
यदि बच्चे की आयु सात वर्ष से अधिक है, तो इसकी कस्टडी पिता को दी जाती है, परन्तु अधिकांश मामलों में इस बात के लिए दोनों पक्ष सहमत नहीं होते है | यदि कोर्ट द्वारा बच्चे की देख-रेख की जिम्मेदारी माँ को दी जाती है, और बच्चों के पिता द्वारा यह साबित कर दिया जाता है, कि मां बच्चों की देखरेख उचित ढंग से नहीं कर रही है, तो ऐसी स्थिति में सात वर्ष से कम उम्र के बच्चे की देख-रेख की जिम्मेदारी कोर्ट द्वारा पिता को सौंप दी जाती है |
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तलाक हेतु आवश्यक दस्तावेज
(Documents Required For Divorce)·
शादी का मैरिज सर्टिफिकेट (Marriage Certificate)·
शादी की फोटो या अन्य कोई प्रमाण (MarriagePhoto) ·
पहचान प्रमाण पत्र (Identity Card) ·
कोई अन्य दस्तावेज जो आप संलग्न करना चाहते हैं (Other Certificate)
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आपसी सहमति से तलाक हेतु आवेदन प्रक्रिया
(Application Process For Divorce by Mutual Consent) · आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया काफी सरल होती है | आपसी सहमति का मतलब दोनों पक्ष एक दूसरे के साथ नहीं रहना चाहते है | आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए नियमानुसार, दोनों पक्षों को एक वर्ष तक अलग-अलग रहना होता है, इसके बाद ही केस दायर किया जा सकता है | इसके साथ ही कुछ अन्य प्रक्रियाओं का पालन करना होता है, जो इस प्रकार है – इस प्रक्रिया के अंतर्गत दोनों पक्षों को सबसे पहले न्यायालय में एक याचिका दायर करनी होती है, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखना होता है कि आपसी सहमति से हम दोनों तलाक लेना चाहते है | ·
इसके पश्चात न्यायालय में दोनों पक्षों के बयान दर्ज किए जाते हैं, इसके आलावा कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भी करवाए जाते है | ·
तलाक के लिए याचिका दायर करनें के पश्चात न्यायालय द्वारा दोनों पक्षों को 6 माह का समय दिया जाता है, ताकि इस दौरान आप दोनों साथ रहनें का निर्णय ले सकते है | ·
न्यायालय द्वारा दिया गया समय समाप्त होनें पर दोनों पक्षों को बताया जाता है और यह अंतिम सुनवाई होती है | इस दौरान भी यदि दोनों पक्ष तलाक चाहते है, तो कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय दे दिया जाता है |
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इस प्रकार आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया 6 माह में समाप्त हो जाती है |
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एकतरफा तलाक (कोर्ट में अर्जी लगाकर)
एकतरफा तलाक का निर्णय कितनें समय में मिलेगा, इसकी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है | इस प्रक्रिया के अंतर्गत तलाक लेने के लिए आधार होना आवश्यक होता है, इसके साथ ही एकतरफा तलाक दिए जाने के मामले में इन महत्वपूर्ण बातों का शामिल होना आवश्यक है। इनमें किसी बाहरी व्यक्ति से यौन संबंध बनाना, शारीरिक-मानसिक क्रूरता, दो या दो से अधिक वर्षो से अलग-अलग रहनें कि स्थिति में , गंभीर यौन रोग, मानसिक रोगी, धर्म परिवर्तन या धर्म संस्कारों को लेकर दोनों के बीच में तलाक हो सकता है। हम अक्सर सुनते हैं कि पति-पत्नी में मामूली सी बात को लेकर कहासुनी हो गई या फिर झगड़ा हो गया. कई बार तो नौबत तलाक तक आ जाती है. भारत में तलाक मानो जैसे आम सी बात हो गई है. वैसे तो शादी के पवित्र बंधन को तोड़ने वाला ये काम नहीं करना चाहिए लेकिन अगर पति में किसी बात को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है और घर में आए दिन झगड़े होते हैं तो वे इस विकल्प को तलाशते हैं.
भारत में तलाक दो तरीकों से लिया जाता है. पहला आपसी सहमति से और दूसरे तरीके में पति या पत्नी से में से सिर्फ एक ही तलाक लेना चाहता है, दूसरा नहीं. आपसी सहमति से तलाक लेना देश में बहुत आसान है. तलाक की बात आते ही गुजारा भत्ता और चाइल्ड कस्टडी की बात आती है. गुजारे भत्ते की लिमिट फिक्स नहीं होती है. इसको पति- पत्नी बैठकर तय कर सकते हैं. इस मामले में कोर्ट पति की आर्थिक हालत को देखकर गुजारे भत्ते का फैसला करती है. अगर कोर्ट को लगता है कि पति की आर्थिक स्थिती अच्छी है तो पत्नी को ज्यादा भत्ता मिलता है.
@9 वहीं चाइल्ड कस्टडी तलाक में एक बहुत बड़ा पेंच साबित होता है. तलाक के बाद अगर पति पत्नी की सहमति है तो दोनों ही बच्चों की देखभाल कर सकते हैं. भारत में ये कानून है कि अगर बच्चे की उम्र सात साल से कम है तो बच्चा मां को सौंपा जाता है वहीं अगर बच्चे की उम्र सात साल से ज्यादा है तो उसे पिता को सौंपा जाता है. हालांकि इसमें ये भी प्रावधान है कि अगर पिता कोर्ट में ये साबित कर दे कि वे मां से ज्यादा अच्छी देखभाल कर सकता है तो कोर्ट सात साल से कम उम्र वाले बच्चों की कस्टडी भी मां को सौंप देती है.
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आपसी सहमति से तलाक
अगर पती-पत्नि आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं तो इसके लिए शर्त है कि वे दोनों एक साल से अलग रहे हैं हों. इसके अलावा इन दोनों को कोर्ट में पीआईएल दाखिल करनी होगी कि हम आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं. साथ ही कोर्ट अपने सामने दोनों के बयाद दर्ज करती है और साइन कराती है. इसके बाद कोर्ट दोनों को रिश्ता बचाने को लेकर विचार करने के लिए छह महीने का वक्त देती है. जब छह महीने पूरे हो जाते हैं और दोनों में सहमति नहीं बन पाती तो कोर्ट अपना आखिरी फैसला सुनाती है.
आपसी सहमति के अलावा एक और तरीके से तलाक ली जा सकती है. इसमें अगर पति या फिर पत्नी दोनों में से एक तलाक लेना चाहता है तो उसे ये साबित करना होगा कि वो तलाक क्यों लेना चाहते है. इसके पीछे कई स्थितियां हो सकती हैं, जैसे दोनों में से कोई एक पार्टनर शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना, धोखा देना, पार्टनर द्वारा छोड़ देना, पार्टनर की दिमागी हालत ठीक ना होना और नपुंसकता जैसी गंभीर मामले में ही तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है. इसके बाद पार्टनर को बताया हुआ कारण कोर्ट में साबित भी करना होगा.
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केस लड़कर कैसे लें तलाक
इस मामले में पार्टनर को ये तय करना होगा कि वह किस आधार पर तलाक लेना चाहता है. जिस आधार पर तलाक लेनी है उसके पुख्ता सबूत होने बहुत जरूरी हैं. इसके बाद कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सारे सबूत पेश करने होंगे. अर्जी के बाद कोर्ट दूसरे पार्टनर को नोटिस भेजेगी. नोटिस के बाद अगर पार्टनर कोर्ट नहीं पहुंचता है तो तलाक लेने वाले पार्टनर को कागजों के हिसाब से उसके हक में फैसला सुना दिया जाता है.
वहीं अगर नोटिस के बाद पार्टनर कोर्ट पहुंचता है तो दोनों की सुनवाई होती है और ये कोशिश की जाती है कि मामला बातचीत से सुलझ जाए. अगर बातचीत से मामला नहीं सुलझता है तो केस करने वाला पार्टनर दूसरे पार्टनर के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल करता है. लिखित बयान 30 से 90 दिन के अंदर होना चाहिए. बयान के बाद कोर्ट आगे के प्रक्रिया पर विचार करती है. इसके बाद कोर्ट दोनों पक्षों की सुनवाई के साथ-साथ उनके द्वारा पेश किए गए सबूतों और दस्तावेजों को दोबारा से देखने के बाद अपना फैसला सुनाती है .
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तलाक के लिए आधार का होना जरूरी
हमारे देश में पति पत्नी के रिश्तों में तकरार की बिनाह पर तलाक के नियम नहीं है. तलाक के लिए दोनों को आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करना होता है. या फिर हिंदू मैरिज एक्ट में जो आधार दिए गए उनमें से किसी एक को साबित करके तलाक के लिए अप्लाई कर सकते हैं.
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