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विवाह- विच्छेद /धारा 13 क हिन्दू विवाह अधिनियम -


  धारा 13 क हिन्दू विवाह अधिनियम -विवाह- विच्छेद
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विवाह- विच्छेद कार्यवाहियों में प्रत्यर्थी को वैकल्पिक अनुतोष विवरण विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह के विघटन के लिए अर्जी पर इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही में, उस दशा को छोड़कर जहाँ और जिस हद तक अर्जी धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (ii), (vi) और (vii) में वर्णित आधारों पर है, यदि न्यायालय मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह न्यायोचित समझता है तो विवाह-विच्छेद की डिक्री के बजाय न्यायिक-पृथक्करण के लिए डिक्री पारित कर सकेगा। 
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धारा 13ख हिन्दू विवाह अधिनियम - 
पारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद विवरण (1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए या दोनों पक्षकार मिलकर विवाह-विच्छेद की डिक्री विवाह के विघटन के लिए अर्जी जिला न्यायालय में, चाहे ऐसा विवाह, विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम, 1976 के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठापित किया गया हो चाहे उसके पश्चात् इस आधार पर पेश कर सकेंगे कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं और वे एक साथ नहीं रह सके हैं तथा वे इस बात के लिए परस्पर सहमत हो गये हैं कि विवाह विघटित कर देना चाहिये। (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अर्जी के उपस्थापित किये जाने की तारीख से छ: मास के पश्चात् और अठारह मास के भीतर दोनों पक्षकारों द्वारा किये गये प्रस्ताव पर, यदि इस बीच अजीं वापिस नहीं ले ली गई हो तो न्यायालय पक्षकारों को सुनने के पश्चात् और ऐसी जाँच, जैसी वह ठीक समझे, करने के पश्चात् अपना यह समाधान कर लेने पर कि विवाह अनुष्ठापित हुआ है और अर्जी में किये गये प्रकाशन सही हैं यह घोषणा करने वाली डिक्री पारित करेगा कि विवाह डिक्री की तारीख से विघटित हो जाएगा। 
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धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम  

वाद लंबित रहते भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय

विवरण

जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन के होने वाली किसी कार्यवाही में 

 न्यायालय को यह प्रतीत हो कियथास्थितिपति या पत्नी की ऐसी  

कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल  और कार्यवाही के आवश्यक  

व्ययों के लिए पर्याप्त हो वहाँ वह पति या पत्नी के आवेदन पर प्रत्यर्थी को

  यह आदेश दे सकेगा कि वह अर्जीदार को कार्यवाही में होने वाले व्यय  

तथा कार्यवाही के दौरान में प्रतिमास ऐसी राशि संदत्त करे जो अर्जीदार  

की अपनी आय तथा प्रत्यर्थी की आय को देखते हुए न्यायालय को 

 युक्तियुक्त   प्रतीत हो 

परन्तु कार्यवाही का व्यय और कार्यवाही के दौरान की ऐसी मासिक 

 राशि के  भुगतान के लिये के आवेदन कोयथासंभव पत्नी या पति जैसी स्थिति हो 

पर नोटिस की तामील से साठ दिनों में निपटाएंगे 

                                                  thank you

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धारा 25 हिन्दू विवाह अधिनियम स्थायी निर्वाहिका  

 

और भरण-पोषण

विवरण

(1) इस अधिनियम के अधीन अधिकारिता का प्रयोग कर रहा कोई भी  

न्यायालयडिक्री पारित करने के समय या उसके पश्चात् किसी भी समय 

यथास्थितिपति या पत्नी द्वारा इस प्रयोजन से किए गए आवेदन परयह  

आदेश दे सकेगा कि प्रत्यर्थी उसके भरण-पोषण और संभाल के लिए ऐसी कुल राशि या ऐसी मासिक अथवा  

कालिक राशिजो प्रत्यर्थी की अपनी आय और अन्य सम्पत्ति कोयदि  

कोई होआवेदक या आवेदिका की आय और अन्य सम्पत्ति को तथा  

पक्षकारों के आचरण और मामले की अन्य परिस्थितियों को देखते हुए  

न्यायालय को न्यायसंगत प्रतीत होआवेदक या आवेदिका के जीवन-काल से अनधिक अवधि के लिए संदत करे और ऐसा कोई भी संदाय यदि यह  

करना आवश्यक हो तोप्रत्यर्थी की स्थावर सम्पत्ति पर भार द्वारा प्रतिभूत  

किया जा सकेगा। 

(2) 
यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि उसके उपधारा (1) के अधीन  

आदेश करने के पश्चात् पक्षकारों में से किसी की भी परिस्थितियों में तब्दीली  

हो गई है तो वह किसी भी पक्षकार की प्रेरणा पर ऐसी रीति से जो न्यायालय 

 को न्यायसंगत प्रतीत हो ऐसे किसी आदेश में फेरफार कर सकेगा या उसे  

उपांतरित अथवा विखण्डित कर सकेगा। 
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(3) 
यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि उस पक्षकार ने जिसके पक्ष  

में इस 

 धारा के अधीन कोई आदेश किया गया हैपुनर्विवाह कर लिया है या यदि  

ऐसा पक्षकार पत्नी है तो वह सतीव्रता नहीं रह गई हैया यदि ऐसा पक्षकार  

पति है तो उसने किसी स्त्री के साथ विवाहबाह्य मैथुन किया है तो वह दूसरे  

पक्षकार की प्रेरणा पर ऐसे किसी आदेश का ऐसी रीति मेंजो न्यायालय  

न्यायसंगत समझेपरिवर्तितउपांतरित या विखण्डित कर सकेगा।

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