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धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम -
वाद लंबित रहते भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय
विवरण
जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन के होने वाली किसी कार्यवाही में
न्यायालय को यह प्रतीत हो कि, यथास्थिति, पति या पत्नी की ऐसी
कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल और कार्यवाही के आवश्यक
व्ययों के लिए पर्याप्त हो वहाँ वह पति या पत्नी के आवेदन पर प्रत्यर्थी को
यह आदेश दे सकेगा कि वह अर्जीदार को कार्यवाही में होने वाले व्यय
तथा कार्यवाही के दौरान में प्रतिमास ऐसी राशि संदत्त करे जो अर्जीदार
की अपनी आय तथा प्रत्यर्थी की आय को देखते हुए न्यायालय को
युक्तियुक्त प्रतीत हो :
परन्तु कार्यवाही का व्यय और कार्यवाही के दौरान की ऐसी मासिक
राशि के भुगतान के लिये के आवेदन को, यथासंभव पत्नी या पति जैसी स्थिति हो,
पर नोटिस की तामील से साठ दिनों में निपटाएंगे ।
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धारा 25 हिन्दू विवाह अधिनियम - स्थायी निर्वाहिका
और भरण-पोषण
विवरण
(1) इस अधिनियम के अधीन अधिकारिता का प्रयोग कर रहा कोई भी
न्यायालय, डिक्री पारित करने के समय या उसके पश्चात् किसी भी समय,
यथास्थिति, पति या पत्नी द्वारा इस प्रयोजन से किए गए आवेदन पर, यह
आदेश दे सकेगा कि प्रत्यर्थी उसके भरण-पोषण और संभाल के लिए ऐसी कुल राशि या ऐसी मासिक अथवा
कालिक राशि, जो प्रत्यर्थी की अपनी आय और अन्य सम्पत्ति को, यदि
कोई हो, आवेदक या आवेदिका की आय और अन्य सम्पत्ति को तथा
पक्षकारों के आचरण और मामले की अन्य परिस्थितियों को देखते हुए
न्यायालय को न्यायसंगत प्रतीत हो, आवेदक या आवेदिका के जीवन-काल से अनधिक अवधि के लिए संदत करे और ऐसा कोई भी संदाय यदि यह
करना आवश्यक हो तो, प्रत्यर्थी की स्थावर सम्पत्ति पर भार द्वारा प्रतिभूत
किया जा सकेगा।
(2) यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि उसके उपधारा (1) के अधीन
आदेश करने के पश्चात् पक्षकारों में से किसी की भी परिस्थितियों में तब्दीली
हो गई है तो वह किसी भी पक्षकार की प्रेरणा पर ऐसी रीति से जो न्यायालय
को न्यायसंगत प्रतीत हो ऐसे किसी आदेश में फेरफार कर सकेगा या उसे
उपांतरित अथवा विखण्डित कर सकेगा।
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(3) यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि उस पक्षकार ने जिसके पक्ष
में इस
धारा के अधीन कोई आदेश किया गया है, पुनर्विवाह कर लिया है या यदि
ऐसा पक्षकार पत्नी है तो वह सतीव्रता नहीं रह गई है, या यदि ऐसा पक्षकार
पति है तो उसने किसी स्त्री के साथ विवाहबाह्य मैथुन किया है तो वह दूसरे
पक्षकार की प्रेरणा पर ऐसे किसी आदेश का ऐसी रीति में, जो न्यायालय
न्यायसंगत समझे, परिवर्तित, उपांतरित या विखण्डित कर सकेगा।
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